हरिशंकर परसाई
हरिशंकर परसाई (१९२४ - १९९५) हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परम्परागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा।
उद्धरण
सम्पादन- 'जूते खा गए' अजब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाए कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा जाता है।
- अपनी पत्नी के बारे में भी उसकी यही धारणा होगी कि इस स्त्री का जन्म मुझसे विवाह करके मुझे तंग करने के लिए हुआ था। -- ( निठल्ले की डायरी )
- अब करना यह चाहिए। रोज़ विधानसभा के बाहर एक बोर्ड पर 'आज का बाजार भाव' लिखा रहे। साथ ही उन विधायकों की सूची चिपकी रहे जो बिकने को तैयार हैं। इससे ख़रीददार को भी सुविधा होगी और माल को भी।
- आखिर कब हम तुक को तिलांजलि देंगे? कब बेतुका चलने की हिम्मत करेंगे? -- ( तिरछी रेखाएँ )
- आत्मविश्वास धन का होता है, विद्या का भी और बल का भी, पर सबसे बड़ा आत्मविश्वास नासमझी का होता है । -- ( निठल्ले की डायरी )
- आम भारतीय जो गरीबी में, गरीबी की रेखा पर, गरीबी की रेखा के नीचे हैं, वह इसलिए जी रहा है कि उसे विभिन्न रंगों की सरकारों के वादों पर भरोसा नहीं है। भरोसा हो जाये तो वह खुशी से मर जाये। यह आदमी अविश्वास, निराशा और साथ ही जिजीविषा खाकर जीता है। -- ( आवारा भीड़ के खतरे )
- इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं पर वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं।
- इस पृथ्वी पर जनता की उपयोगिता कुल इतनी है कि उसके वोट से मंत्रिमंडल बनते हैं।
- उपदेश—अगर चाहते हो कि कोई तुम्हें हमेशा याद रखे, तो उसके दिल में प्यार पैदा करने का झंझट न उठाओ । उसका कोई स्केंडल मुट्ठी में रखो । वह सपने में भी प्रेमिका के बाद तुम्हारा चेहरा देखेगा । -- ( निठल्ले की डायरी )
- उसे लगभग ढाई सौ रुपए माहवार मिलते थे । ऊपरी आमदनी बहुत कम या नहीं होती होगी, क्योंकि अच्छी ऊपरी आमदनीवाला कभी तरक्की के झंझट में नहीं पड़ता । -- ( निठल्ले की डायरी )
- एक दिन तरुणों ने उनसे कहा, “प्रातःस्मरणीयो, सुनामधन्यो! आप अब वृद्ध हुए— वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध और कलावृद्ध हुए । आप अब देवता हो गए । हम चाहते हैं कि आप लोगों को मन्दिर में स्थापित कर दें । वहाँ आप आराम से रहें और हमें आशीर्वाद दें । -- ( निठल्ले की डायरी )
- एक देश है! गणतंत्र है! समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है!
- काव्य-विवेक एक नहिं मोरे । सत्य कहौं लिख कागद कोरे।। -- ( तुलसीदास चन्दन घिसैं )
- किसी अलौकिक परम सत्ता के अस्तित्व और उसमें आस्था मनुष्य के मन में गहरे धँसी होती है। यह सही है। इस परम सत्ता को, मनुष्य अपनी आखिरी अदालत मानता है। इस परम सत्ता में मनुष्य दया और मंगल की अपेक्षा करता है। फिर इस सत्ता के रूप बनते हैं, प्रार्थनाएँ बनती हैं। आराधना-विधि बनती है। पुरोहित वर्ग प्रकट होता है।कर्मकाण्ड बनते हैं। सम्प्रदाय बनते हैं। आपस में शत्रु भाव पैदा होता है, झगड़े होते हैं। दंगे होते हैं। -- ( आवारा भीड़ के खतरे )
- खुद चाहे कुछ न करूँ, पर दूसरों के काम में दखल जरूर दूँगा । -- ( निठल्ले की डायरी )
- चाहे कोई दार्शनिक बने, साधु बने या मौलाना बने। अगर वो लोगों को अंधेरे का डर दिखाता है, तो ज़रूर वो अपनी कंपनी का टॉर्च बेचना चाहता है।
- जगन्नाथ काका के साथ मैं एक बारात से लौट रहा था। एक डिब्बे पर बारातियों ने कब्जा कर लिया था । काका ने मुझसे कहा, "अगर अपना भला चाहते हो, तो दूसरे डिब्बे में बैठो । बाराती से ज्यादा बर्बर जानवर कोई नहीं होता । ऐसे जानवरों से हमेशा दूर रहना चाहिए । लौटती बारात बहुत खतरनाक होती है । उसकी दाढ़ में लड़कीवाले का खून लग जाता है और वह रास्ते में जिस-तिस पर झपटती है । कहीं झगड़ा हो गया, तो हम दोनों भी उनके साथ पिटेंगे । -- ( निठल्ले की डायरी )
- जो पानी छानकर पीते हैं, वो आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं।
- झूठ बोलने के लिए सबसे सुरक्षित जगह अदालत है।
- दिवस कमजोर का मनाया जाता है, जैसे महिला दिवस, अध्यापक दिवस, मजदूर दिवस। कभी थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता।
- दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है। इसका उपयोग महत्वाकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं। यह भीड़ धार्मिक उन्मादियों के पीछे चलने लगती है। यह भीड़ किसी भी ऐसे संगठन के साथ हो सकती है जो उनमें उन्माद और तनाव पैदा कर दे। फिर इस भीड़ से विध्वंसक काम कराए जा सकते हैं। यह भीड़ फासिस्टों का हथियार बन सकती है। हमारे देश में यह भीड़ बढ़ रही है। इसका उपयोग भी हो रहा है। आगे इस भीड़ का उपयोग सारे राष्ट्रीय और मानव मूल्यों के विनाश के लिए, लोकतंत्र के नाश के लिए करवाया जा सकता है। -- ( आवारा भीड़ के खतरे )
- दुनिया में भाषा, अभिव्यक्ति के काम आती है। इस देश में दंगे के काम आती है।
- देश की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने मे जा रही है। पाव ताकत छिपाने मे जा रही है, शराब पीकर छिपाने में, प्रेम करके छिपाने में, घूस लेकर छिपाने में, बची पाव ताकत से देश का निर्माण हो रहा है, तो जितना हो रहा है, बहुत हो रहा है। आख़िर एक चौथाई ताकत से कितना होगा।
- धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को जिस दिन "महाजन" कहा गया होगा, उस दिन ही मनुष्यता की हार हो गई।
- धर्म अच्छे को डरपोक और बुरे को निडर बनाता है।
- धार्मिक उन्माद पैदा करना, अंधविश्वास फैलाना, लोगों को अज्ञानी और क्रूर बनाना; राजसत्ता, धर्मसत्ता और पुरुष सत्ता का पुराना हथकंडा है।
- नशे के मामले में हम बहुत ऊँचे हैं। दो नशे खास हैं- हीनता का नशा और उच्चता का नशा। जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं।
- नारी-मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि - ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता।'
- निंदकों को दंड देने की जरूरत नहीं, खुद ही दंडित है। आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता।
- निंदा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है। मनुष्य अपनी हीनता से दबता है। वह दूसरों की निंदा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है। उसके अहम् की इससे तुष्टि होती है। बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी बनती है। ज्यों-ज्यों कर्म क्षीण होता जाता है, त्यों-त्यों निंदा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। कठिन कर्म ही ईर्ष्या-द्वेष और इनसे उत्पन्न निंदा को मारता है। इंद्र बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है क्योंकि वह निठल्ला है। स्वर्ग में देवताओं को बिना उगाया अन्न, बे बनाया महल और बिन-बोये फल मिलते हैं। अकर्मण्यता में उन्हें अप्रतिष्ठित होने का भय रहता है, इसलिए कर्मी मनुष्यों से उन्हें ईर्ष्या होती है। -- ( तिरछी रेखाएँ )
- न्याय को अंधा कहा गया है - मैं समझता हूँ न्याय अंधा नहीं, काना है, एक ही तरफ देख पाता है। -- ( तिरछी रेखाएँ )
- परेशानी साहित्य की कसरत है। जब देखते हैं, ढीले हो रहे हैं, परेशानी के दंड पेल लेते हैं। माँसपेशियाँ कस जाती हैं। -- ( आवारा भीड़ के खतरे )
- पुरुष रोता नहीं है पर जब वो रोता है, रोम-रोम से रोता है। उसकी व्यथा पत्थर में दरार कर सकती है।
- पुस्तक लिखनेवाले से बेचनेवाला बड़ा होता है। कथा लिखनेवाले से कथावाचक बड़ा होता है। सृष्टि निर्माता से सृष्टि को लूटनेवाला बड़ा होता है।
- प्रजातंत्र में सबसे बड़ा दोष तो यह है कि उसमें योग्यता को मान्यता नहीं मिलती, लोकप्रियता को मिलती है। हाथ गिने जाते हैं, सर नहीं तौले जाते।
- बच्चा, ये कोई अचरच की बात नहीं है। हमारे यहाँ जिसकी पूजा की जाती है उसकी दुर्दशा कर डालते हैं। यही सच्ची पूजा है। नारी को भी हमने पूज्य माना और उसकी जैसी दुर्दशा की सो तुम जानते ही हो।
- बड़े कठोर आदमी है। शादी-ब्याह नहीं किया। न बाल-बच्चे। घूस भी नहीं चलेगी। -- ( विकलांग श्रद्धा का दौर )
- बाज़ार बढ़ रहा है , इस सड़क पर किताबों की एक नयी दुकान खुली है और दवाओं की दो। ज्ञान और बीमारी का यही अनुपात है हमारे शहर में।
- बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है।
- भरत ने कहा - स्मगलिंग तो अनैतिक है। पर स्मगल किए हुए सामान से अपना या अपने भाई-भतीजे का फायदा होता है, तो यह काम नैतिक हो जाता है। जाओ हनुमान, ले जाओ दवा। मुंशी से कहा - रजिस्टर का पन्ना फाड़ दो। -- ( विकलांग श्रद्धा का दौर )
- मैं इतना बड़ा लेखक हूँ । यहाँ तीन गर्ल्स-कालेज हैं । उनकी सारी लड़कियों को मेरे इर्द-गिर्द होना चाहिए कि नहीं ? मगर कोई नहीं आती । -- ( निठल्ले की डायरी )
- मैं ईसा की तरह सूली पर से यह नहीं कहता - पिता, उन्हें क्षमा कर। वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं। मैं कहता - पिता, इन्हें हरगिज क्षमा न करना। ये कम्बख्त जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं। -- ( विकलांग श्रद्धा का दौर )
- मैं काका की सलाह मानकर फजीहत में पड़ गया । एक दिन वे कहने लगे, "आयुष्मान, कोई लेबिल अपने ऊपर चिपका लो, वरना किसी दिन जेल चले जाओगे । तुम्हें बेकार घूमते देखकर किसी दिन कोई पुलिसवाला पूछेगा—क्या नाम है तेरा ? बाप का नाम क्या है? कहाँ नौकरी करता है? तुम अपना और बाप का नाम तो बता दोगे, पर तीसरे सवाल के जवाब में कहोगे—नौकरी कहीं नहीं करता । यह सुनकर पुलिसवाला कहेगा-नौकरी नहीं करता? तब कोई चोर-उचक्का है तू । वह तुम्हें पकड़कर ले जाएगा । इस देश में जो किसी की नौकरी नहीं करता, वह चोरसमझा जाता है । गुलामी के सिवा शराफत की कोई पहचान हम जानते ही नहीं हैं । -- ( निठल्ले की डायरी )
- मैंने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या यह स्नो खरीद लो । अपनी चीज वह खुद पसन्द करती है, मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में दखल देती -- ( निठल्ले की डायरी )
- राजनीति में शर्म केवल मूर्खों को ही आती है।
- राजनीतिज्ञों के लिए हम नारे और वोट हैं, बाकी के लिए हम गरीब, भूख, महामारी और बेकारी हैं। मुख्यमंत्रियों के लिए हम सिरदर्द हैं और उनकी पुलिस के लिए हम गोली दागने के निशाने हैं।
- लड़कों को, ईमानदार बाप निकम्मा लगता है।
- विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है, या किसी के विरोध से भय लगने लगता है। तब तर्क का स्थान हुल्लड़ या गुंडागर्दी ले लेती है।
- विज्ञान ने बहुत से भय भी दूर कर दिये हैं, हालाँकि नये भय भी पैदा कर दिये हैं। विज्ञान तटस्थ (न्यूट्रल) होता है। उसके सवालों का, चुनौतियों का जवाब देना होगा। मगर विज्ञान का उपयोग जो करते हैं, उनमें वह गुण होना चाहिए, जिसे धर्म देता है। वह गुण है - 'अध्यात्म' - अन्ततः मानवतावाद, वरना विज्ञान विनाशकारी भी हो जाता है। -- ( आवारा भीड़ के खतरे )
- विवाह का दृश्य बड़ा दारुण होता है। विदा के वक्त औरतों के साथ मिलकर रोने को जी करता है। लड़की के बिछुड़ने के कारण नहीं, उसके बाप की हालत देखकर लगता है, इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है। पाव ताकत छिपाने में जा रही है–शराब पीकर छिपाने में, प्रेम करके छिपाने में, घूस लेकर छिपाने में–बची हुई पाव ताकत से देश का निर्माण हो रहा है–तो जितना हो रहा है, बहुत हो रहा है। आखिर एक चौथाई ताकत से कितना होगा? -- ( अपनी अपनी बीमारी )
- सत्य को भी प्रचार चाहिए, अन्यथा वह मिथ्या मान लिया जाता है।
- सफेदी की आड़ में हम बूढ़े वह सब कर सकते हैं, जिसे करने की तुम जवानों की भी हिम्मत नहीं होती । -- हरिशंकर परसाई )
- सबसे निरर्थक आंदोलन भ्रष्टाचार के विरोध का आंदोलन होता है। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से कोई नहीं डरता। एक प्रकार का यह मनोरंजन है जो राजनीतिक पार्टी कभी-कभी खेल लेती है, जैसे कबड्डी का मैच।
- सबसे बड़ी मूर्खता है - इस विश्वास से लबालब भरे रहना कि लोग हमें वही मान रहे हैं, जो हम उन्हें मनवाना चाहते हैं।
- सरकार का विरोध करना भी सरकार से लाभ लेने और उससे संरक्षण प्राप्त करने की एक तरकीब है।
- साल-भर सांप दिखे तो उसे भगाते हैं। मारते हैं। मगर नागपंचमी को सांप की तलाश होती है, दूध पिलाने और पूजा करने के लिए। सांप की तरह ही शिक्षक दिवस पर रिटायर्ड शिक्षक की तलाश होती है, सम्मान करने के लिए।
- साहित्य में जब सन्नाटा आता है, तब कुत्ते भौंककर उसे दूर करते हैं; या साहित्य की बस्ती में कोई अजनबी घुसता है तब भी कुत्ते भौकते हैं। साहित्य में दो तरह के लोग होते हैं- रचना करने वाले और भौंकने वाले। साहित्य के लिए दोनों जरूरी हैं। -- ( आवारा भीड़ के खतरे )
- हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं। संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूँजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं।
- हमारे देश में सबसे आसान काम आदर्शवाद बघारना है और फिर घटिया से घटिया उपयोगितावादी की तरह व्यवहार करना है। कई सदियों से हमारे देश के आदमी की प्रवृत्ति बनाई गई है अपने को आदर्शवादी घोषित करने की, त्यागी घोषित करने की। पैसा जोड़ना त्याग की घोषणा के साथ ही शुरू होता है। -- ( आवारा भीड़ के खतरे )
- हीनता के रोग में किसी के अहित का इंजेक्शन बड़ा कारगर होता है। -- ( विकलांग श्रद्धा का दौर )
- - स्वामीजी, दूसरे देशों में लोग गाय की पूजा नही करते, पर उसे अच्छी तरह रखते है और वह बहुत खूब दूध देती है।
- - बच्चा, दूसरे देशो की बात छोडो। हम उनसे बहुत ऊँचे है। देवता इसीलिय सिर्फ हमारे यहाँ अवतार लेते है। दुसरे देशो में गाय दूध के उपयोग के लिए होती है, हमारे यहाँ दँगा करने, आंदोलन करने के लिए होती है। हमारी गाय और गायो से भिन्न है।
- - स्वामीजी, और सब समस्याएं छोड़कर आप लोग इसी एक काम में क्यों लग गए है?
- - इसी से सब हो जाएगा बच्चा! अगर गोरक्षा का क़ानून बन जाए तो यह देश अपने आप समृद्ध हो जाएगा। फ़िर बादल समय पर पानी बरसाएंगे, भूमि खूब अन्न देगी और कारखाने बिना चले भी उत्पादन करेंगे। धर्म का प्रताप तुम नही जानते। अभी जो देश की दुर्दशा है, वह गौ के अनादर के कारण ही है।
- - एक और बात बताइये। कई राज्यो में गौ रक्षा के लिए क़ानून है बाकी में समाप्त हो जाएगा। आगे आप किस बात पर आंदोलन करेंगे?
- - अरे बच्चा, आंदोलन के लिए बहुत विषय है। सिंह दुर्गा का वाहन है। उसे सर्कस वाले पिंजरे में बंद करके रखते है और उससे खेल कराते है। यह अधर्म है। सब सर्कसो के खिलाफ आंदोलन करके, देश के सारे सर्कस बन्द करवा देंगे। फिर भगवान का एक अवतार मत्स्यावतर भी है। मछली भगवान का प्रतीक है। हम मछुओ के खोलाफ आंदोलन छेड़ देंगे। सरकार का मत्स्यपालन विभाग बन्ध करवा देंगे।
- - स्वामीजी उल्लू लक्ष्मी जी का वाहन है। उसके लिए भी तो कुछ करना चाहिये।
- - यह सब उसीके लिए तो कर रहे है, बच्चा! इस देश में उल्लू को कोई कष्ट नही है। वह मजे में है।”
- -- ( निठल्ले की डायरी )
- मेरी सुलझी हुई दृष्टि का यही रहस्य है। दूसरो को सुख का रास्ता बताने के लिए में प्रश्न और उत्तर बता देता हूं।
- तुम किस देश के निवासी हो?
- भारत के।
- तुम किस जाति के हो?
- आर्य।
- विश्व में सबसे प्राचीन जाति कौन?
- आर्य।
- और सबसे श्रेष्ठ?
- आर्य।
- क्या तुमने खून की परीक्षा कराइ है?
- हां, उसमे सौ प्रतिशत आर्य सेल है।
- देवता भगवान को क्या प्रार्थना करते है?
- की हमे पुण्यभूमि भारत में जन्म दो।
- बाकी भूमि कैसी है?
- पापभूमि है।
- देवता कही और जन्म नही लेते?
- कतई नहीं। वे मुझे बताकर जन्म लेते है।
- क्या देवताओ के पास राजनितिक नक्शा है?
- हां, देवताओंके पास 'ऑक्सफर्ड वर्ल्ड एटलास' है।
- क्या उन्हें पाकिस्तान बनने की खबर है?
- उन्हें सब मालूम है। वे 'बाउंड्री कमीशन' की रेखा को मानते है।
- ज्ञान विज्ञान किसके पास है?
- सिर्फ आर्यो के पास।
- यानी तुम्हारे पास?
- नही हमारे पूर्वज आर्यो के पास।
- उसके बाहर कही ज्ञान विज्ञान नही है?
- कहीँ नहीँ।
- इन हजारो सालो में मनुष्य जाति ने कोई उपलब्धि की?
- कोई नहीँ। सारी उपलब्धि हमारे यहाँ हो चुकी थी।
- क्या अब हमे कुछ शीखने की जरूरत है?
- कतई नहीँ। हमारे पूर्वज तो विश्व के गुरू थे।
- संसार में महान कौन?
- हम, हम, हम।
- मेरा ह्रदय गदगद होने लगा। अश्रुपात होने लगा। मैंने आँखे बंद कर ली। मुख से”
- -- ( निठल्ले की डायरी )
- -स्वामीजी, पश्चिम के देश गौ की पूजा नही करते, फिर भी समृद्ध है?
- - उनका तो भगवान दूसरा है बच्चा! उन्हें कोई दोष नही लगता।
- - यानी भगवान रखना भी एक झंझट ही है। वह हर बात दंड देने लगता है।
- - तर्क ठीक है, बच्चा, पर भावना गलत है।
- - स्वामीजी, जहॉ तक मै जानता हूँ, जनता के मनमे इस समय गोरक्षा नही है, महगाई और अर्थिक शोषण है। जनता महँगाई के खिलाफ आंदोलन करती है। वह वेतन और महगाईभत्ता बढ़वाने के लिए हड़ताल करती है। जनता आर्थिक न्याय के लिए लड़ रही है। और इधर आप गोरक्षा आंदोलन लेकर बेठ गए है। इसमें तुक क्या है?
- - बच्चा, इसमें तुक है। देखो जनता जब आर्थिक न्याय की मांग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज में उलज़ा देना चाहिए, नही तो वः खतरनाक हो जाती है। जनता कहती है- हमारी माँग है महगाई बन्ध हो, मुनाफाखोरी बन्द हो, वेतन।बढ़े, शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते है की नही तुम्हारी बुनियादी मांग गोरक्षा है। बच्चा, आर्थिक क्राँति की तरफ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूंटे से बाँध देते है। यह आंदोलन जनता को उलझाये रखने के लिए है।”
- -- ( निठल्ले की डायरी )