समर्थ गुरु रामदास, एक संत एवं शिवाजी के गुरु थे।

  • जो अधर्म करता है और बेईमानी से धन कमाता है, जो अविचारी होता है, ऐसा मनुष्य मूर्ख है।
  • हमेशा अपनी मेहनत के बल पर जीना चाहिए। दूसरों के टुकड़ों पर नहीं पलना चाहिए।
  • जिन्होंने हमें कभी भी तकलीफ नहीं दी, उनको तकलीफ नहीं देनी चाहिए।
  • हमने जो वचन दिया है, उसे हमें नहीं भूलना चाहिए।
  • किसी से भी कठोरता से पेश नहीं आना चाहिए। किसी प्राणी की हत्या नहीं करनी चाहिए।
  • किसी रास्ते पर जाने से पहले वो रास्ता कहां जाता है, यह जानना जरूरी है।
  • किसी विषय पर बात करने से पहले उस विषय पर सोच लेना चाहिए।
  • समय आने पर दूसरों की मदद करनी चाहिए। शरण में आए हुए प्राणी को माफ कर देना चाहिए।
  • कोई सा भी फल उसको जाने बिना नहीं खाना चाहिए।
  • रात के समय दूर की यात्रा के लिए घर से बाहर निकलना नहीं चाहिए।
  • अपनी ताकत का उपयोग दूसरों को बिना किसी कारण से तकलीफ देने के लिए नहीं करना चाहिए।
  • समय आने पर हमें अपनी शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
  • किसी भी काम की शुरुआत करने से पहले उस काम के बारे में जानना जरूरी है।
  • जब दो इंसान बात करते हैं और तीसरा उन दोनों के बीच जाकर परेशान हो जाता है, वो इंसान मूर्ख होता है।
  • किसी और का एहसान हम पर नहीं होने देना चाहिए। अगर कोई हम पर एहसान करता है, तो उस एहसान की वापसी भी जल्दी ही करनी चाहिए।
  • बात करते वक्त किसी को बुरा नहीं कहना चाहिए। अगर किसी ने अपमान किया तो वो नहीं सह लेना चाहिए।
  • बारिश और सही समय को ध्यान में रखकर ही यात्रा के लिए जाना चाहिए।
  • महत्वपूर्ण कामों को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
  • जो इंसान गरीब से अमीर बन जाता है और अपने पुराने रिश्तों को भूल जाता है, वो इंसान अमीर होकर भी हमेशा गरीब ही रहता है और वो इंसान मूर्ख होता है।
  • जिसके पास बुद्धि नहीं है, धन नहीं है और कोई साहस नहीं है, वो इंसान मूर्ख होता है।
  • माया सद्गुरु के रूप को छू नहीं सकती। हमारा सारा ज्ञान माया के क्षेत्र में है। इसलिए हम जैसे अज्ञानी लोगों के लिए सद्गुरु को जानना संभव नहीं है। इसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
  • वेदों की जननी, ब्रह्मा जी की पुत्री, वाणी की स्वामिनी, नाद की जन्मस्थली और महामाया को मैं प्रणाम करता हूँ। आदिपुरुष भगवान के आर्य हैं।
  • दुष्ट अभिमान ईर्ष्या उत्पन्न करता है, ईर्ष्या घृणा उत्पन्न करती है, क्रोध उत्पन्न करती है, लोग अहंकार से विकृत हो जाते हैं, उसके लिए अहंकार को किनारे करना सबसे अच्छा है।
  • दासबोध के अध्ययन से जीवन का पतन रुक जाता है। मन को सच्चा विश्राम और संतोष मिलता है।मैं भगवान गणपति को नमन करता हूं, जो सभी उपलब्धियों के वाहक, अज्ञान को दूर करने वाले, भ्रम को दूर करने वाले, मूर्त ज्ञान के धारक हैं।
  • दशा बोध में कई विकल्प और भ्रांतियां दूर हो जाती हैं, संदेहों को दूर कर दिया जाता है, अपेक्षाओं और प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर दिया जाता है। इस भक्तिमार्ग से नास्तिक लोग भी मोक्ष को प्राप्त करते हैं।