• योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ -- भागवद्गीता
हे धनञ्जय ! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर, योग में स्थित हुआ कर्तव्यकर्मों को कर; यही समत्व योग कहलाता है।
  • समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते॥ -- सुश्रुत संहिता, सूत्रस्थान
जिस मनुष्य के दोष (वात, पित्त और कफ), अग्नि (जठराग्नि), रसादि सात धातु, सम अवस्था में तथा स्थिर रहते हैं, मल मूत्रादि की क्रिया ठीक होती है और शरीर की सब क्रियायें समान और उचित हैं, और जिसके मन इन्द्रिय और आत्मा प्रसन्न रहें वह मनुष्य स्वस्थ है।
  • यह कहना ठीक नहीं है कि समानता प्रकृति का नियम है। प्रकृति ने कुछ भी एक समान नहीं बनाया है। प्रकृति का नियम है- अधीनता तथा निर्भरता। -- Luc de Clapiers, Marquis de Vauvenargues, Réflexions et Maximes (1746)
  • कागज पर घोषणा कर देने से सारे मानव समान नहीं हो जायेंगे। यदि समानता के लिये आवश्यक पदार्थ स्म्बन्धी शर्तें (material conditions) पूरी नहीं होंगी तो सभी मानवों को समान घोषित करना एक उपहास से भी बुरा होगा। -- Voltairine de Cleyre, "In Defense of Emma Goldman and the Right of Expropriation" (1893)
  • जिस समाज में समानता को स्वतंत्रता से अधिक महत्व दिया जायेगा उस समाज में न समानता होगी न स्वतंत्रता। ज्स समाज में स्वतंत्रता को समानता से अधिक महत्व दिया जायेगा, उस समाज में स्वतंत्रता और समानता दोनों ही अधिक मात्रा में होंगी। -- Milton Friedman, From Created Equal, an episode of the PBS Free to Choose television series (1980, vol. 5 transcript).
  • क्योंकि यदि सभी मनुष्यों में सब कुछ समान होता तो किसी भी गुण का महत्व नहीं होता। -- थॉमस हॉब्स, Leviathan (1651), Part I, Chapter 8, page 32.
  • सारी शासित जनता को शासन में अपनी बात कहने का समान अधिकार दीजिये- यही और केअल यही स्व-शासन है। -- अब्राहम लिंकन, Speech at Peoria, Illinois (1854)
  • नयी शासन-व्यवस्था एक सामाजिक पदानुक्रम (social hierarchy) के रूप में होगी। अब यह पुरानी गलत धारणा पर आधारित नहीं रहेगी कि सभी मनुष्य प्राकृतिक रूप से समान हैं। -- Marshal Philippe Pétain, Speech announcing the policy of Vichy France. Quoted in Mark Mazower: Dark Continent: Europe's 20th Century Penguin books, 1998 (p. 73),. Also in Francine Muel-Dreyfus, Vichy and the Eternal Feminine: A Contribution to a Political Sociology of Gender. Duke University Press, 2001 (p. 249).