शंकरदेव
भारतीय विद्वान (1499-1570)
श्रीमन्त शंकरदेव (१४४९ -- १५६८) एक धर्म-प्रचारक, समाज संगठक, गायक, नर्तक, अभिनेता, कवि, चित्रकार थे। वे असमी राष्ट्र-साहित्य-संस्कृति के निर्माता हैं। उन्होंने नवबैष्णव धर्म अथबा एकशरण नामक धर्म का प्रचार करके असमी समाज-जीवन को एकत्रित और संहत किया।
उक्तियाँ
सम्पादन- यैत थाके मोर भक्त उदार चरित्र।
- कीट पतङ्गको तथा करय़ पवित्र॥
- नकरे प्राणीक हिंसा नाहि एको स्पृहा।
- आमात अर्पणा करै आपोनार देहा॥ -- प्रह्लाद चरित
- कुक्कुर शृगाल गर्द्दभरो आत्माराम।
- जानिय़ा सबाको परि करिबा प्रणाम॥
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- सकल प्राणीक देखिबेक आत्मासम।
- उपाय़ मध्यत इटो आति मुख्यतम॥ -- श्रीकृष्णर बैकुण्ठ प्रयाण
- ब्राह्मणर चाण्डालर निबिचारि कुल।
- दातात चोरत यार दृष्टि एकतुल॥
- नीचत साधुत यार भैल एकज्ञान।
- ताहाकेसे पण्डित बोलय़ सर्ब्बजान॥ -- श्रीकृष्णर बैकुण्ठ प्रय़ाण
- चण्डाले करिछे नाम कीर्त्तन।
- बुलिय़ा निन्दे यिटो अज्ञजन॥
- ताक सम्भाषण यिजने करे।
- आजन्मर पुण्य तेखने हरे॥ -- पाषण्ड मर्द्दन
- भकति ये माता भकति ये पिता
- भकति ये बन्धुजन।
- भकति सुहृद सोदर बिधाता
- भकति ये महाधन।
- भकति ये गति भकति ये मति
- भकति ये देव द्बिज।
- भकति ये चित्त भकति ये बित्त
- भकति मोक्षर बीज। -- (दशम) महापुरुषीया धर्मः साम्प्रतिक समय आरु समाज, थगित महन्त, कल्पतरु, एकशरण भागवती समाज, नगाँओ, २०२२
- क्षणिक संसार बिलम्बत कार्य्य नाइ।
- चिन्तामणि जन्म हेरा हातते हराइ॥
- नाहिके चेतन काल अजगरे गिले।
- धनजन जीवन याइबेक एक तिले॥
- यत देखा भार्य्या पुत्र सबे अकारण।
- चाइ मात्र धरे थाके काले धरे तेतिक्षण॥
- बिषय़त सुख एके तिले करि चुर।
- यमर किङ्करे धरि निब यमपुर। (१०६९५ आदि दशम)
- सृष्टिर अन्तत तुमि मात्र थाका
- समताक प्रवर्ताइ।
- तोमार चरणे पशिलोँ शरणे
- तुमि बिने गति नाइ॥
- प्रकृति आश्रय़ आछे आदि बृक्ष
- सुख-दुख दुइ फल।
- तिनि गुणे मूल अर्थ चारिि रस
- शिपाय़े इन्द्रिय़ बल॥
- छय़ उर्म्मि आत्मा सात धातु छाल
- शाखाय़े अष्ट प्रकृति।
- दश बाय़ु पात ईश जीव दुइ
- पक्षी थाकै आत निति॥ -- आदि दशम १०७१२
- यिटो शरीरर अर्थे अनेक प्रबन्ध करि
- इय़ो महा आपदर घर।
- यतेक बाढ़य़ धन ततेक मृत्युसे बाढ़े
- आपद नाहिके आतपर।
- यतेक आछय़ लोक सबारो आगत शोक
- दुखमय़ सकलो संसार।
- यतेक सुन्दरी नारी परम अनर्थकारी
- आतपरे नाहिकै बिकार। -- ( १०७७८, आदि दशम)
- जीवन चञ्चल पद्मपत्र जल
- परि येन थिर नुइ।
- तिलेके संयोगे तिलेके बिय़ोग
- येन आदु मुरि जुइ। (१०८६८, आदि दशम)
- यिटो देव भगवन्त नाइ यार आदि अन्त
- बेदेय़ो नपान्त यार सीमा।
- तेन्ते बैश्य भकतित हेनसे भकति हित
- भकतिर कि कैबो महिमा॥
- जानि एरा आन मति भकतित करा रति
- भकतिसे साधिब कल्याण।
- भकतित दिय़ा मन भकतिसे महाधन
- नाहि आन भकति साधन॥ (१०९२५, आदि दशम)
- क्षणे क्षणे आय़ु याय़ तथापि चेतन नाइ
- किनो बिपरीत भैल माय़ा।
- एकेतिले मरि याय़ एइ आछे एइ नाइ
- सम्यके मेघर येन काय़ा॥
- जानिय़ा एकान्त मति भकतित करा रति
- छारा चार भाषभुष काम।
- समस्ते दुखक बञ्चा अक्षय़ पुण्यक साञ्चा
- निरन्तरे बोला राम राम॥ (११००४, आदि दशम)
- माधबक मध्य करि करे सबे खेड़ि।
- पद्मर चकाक येन पत्रे आछै बेढ़ि।
- पद्मर कर्णिका भैल नन्दर तनय़।
- गोपशिशुगण पद्मपत्रर आन्बय़॥ -- ११०४८, आदि दशम
- सत्य युगे येन फल पावै ध्यान करि।
- महा महा यज्ञे त्रेता युगे यजि हरि॥
- येन फल पावै पूजा करि द्बापरत।
- पावे सब फल कलियुगे कीर्तनत॥ (११०६३, आदि दशम)
- कृष्णर किङ्करे कहे शुना सर्बजन।
- जल बुद् बुद् येन अथिर जीवन॥
- धनजन बन्धु यत सबे अकारण।
- एइ आछे, एइ नाइ सम्यके सपोन॥
- आर अर्थे नरतनु नकरिय़ो बृथा।
- एकचित्त मने शुना माधबर कथा॥
- लभि आछा जन्म यिटो ब्रह्मार बाञ्छनी।
- निबिका काचर मोले मृत्यु सञ्जीवनी॥ -- १११३३, आदि दशम
- उद्धवर आगे माधवे बोलन्त
- आति श्रेष्ठ नरतनु।
- देवर बाञ्छनी परम दुर्लभ
- नपाय़ जाना आक पुनु। -- भक्ति-रत्नाकर, सम्पादक: तीर्थनाथ गोस्बामी १८५८ शक, धलर सत्र
- नरदेहा बिने ज्ञान भक्ति दुइको
- साधिबाक नपारय़।
- एतेके नारकी स्बर्गीय़ो इहाक
- सदाय़ बाञ्छा करय़॥भक्ति-रत्नाकर, सम्पादक: तीर्थनाथ गोस्बामी १८५८ शक, धलर सत्र
- नारद-- हा हा हे माव, कि कहब? एसब कथा कहिते दोष। हामु देवदुर्लभ पारिजात पुष्प स्बर्ग हन्ते आनि कृष्णक हाते देलो। से पारिजात ये कुमारी परिधान करे ये पुष्पक महिमाय़े परम सौभागिनी हय़। इहा जानि हामु बोलल, ओहि पारिजातक योग्य सत्यभामा। तथि कृष्णे कय़लि कि? तोहाक कटाक्ष करिय़े आपुन हाते प्रिय़ा रुक्मिणीक माथे परम सादरे से दिब्य पारिजात पिन्धावल। आः तोहाक जीवन धिक धिक! सतिनीक अभ्युदय़ देखि कि निमित्त प्राण धरह? माव, तुहु जीवन्ते मरल! हा हा बिस्तर कि कहब?(पारिजात हरण नाट)पारिजात हरण नाट, विकिउत्स
- सूत्र॥ परशुराम महा कोपे दण्ड धरल बिश्बामित्रो दण्ड धावलः दुहुँ दण्ड प्राहरक चोटे चूर भेल। तदनन्तर चय़ड़ि धरिय़े युद्ध कय़ल। प्राहर चोटे दुहुँ चय़ड़ि चिरि परलः तदनन्तर बाहु युद्ध कय़ल। दुहुँ दोहाक धरिय़े परि बागरय़। दुहुँ ऋषिक परिधान चर्म खसि परिल। बिष्णुक अंश अजय़ बीर्य परशुराम, ताहेर पराक्रम सहिते नापारि, बिश्बामित्र भङ्ग मानि, प्राणरक्षा करि पलावलः परशुराम पुनर्बार कुठार तुलि श्रीरामक गर्जय़॥ (राम बिजय़ नाट)राम बिजय़ नाट, विकिउत्स
- सूत्र-- ऐछन लीला कौतुक नृत्य करिते, गोपाल सहिते शिशुसव कालि ह्रदक समीप पावल। से बिषमय़ पानी नजानि परम पिपासे पीड़ित हुय़ा सबहु ह्रदक जल उदरभरि पाण करल। ततकले दुर्घोर बिषज्बाला लागिए चेतन हरल, शरीर कम्पि कम्पि प्राण छाड़ि, बत्स बत्सपालसव, कालिन्दी तीरे परल। (कालीय़ दमन)कालीय़ दमन, विकिउत्स
- धन्य धन्य कलिकाल धन्य नरतनु भाल
- धन्य धन्य भारतबरिषे।
- तप जप यज्ञ त्यजि तोमार चरण भजि
- तुवा नाम घुषिय़ो हरिषे॥बेजबरुवा, लक्ष्मीनाथ. तत्त्ब-कथा. बनलता. (बरगीत)
- नाराय़ण, काहे भकति करोँ तेरा,
- यत जीव जंगम,
- कीट पतङ्गम,
- अग-नग-जग तेरि काय़ा। -- बरगीत
- अथिर धनजन जीवन यौवन
- अथिर एहु संसार।
- पुत्र परिवार सबहि असार
- करबो काहेरि सार॥
- कमल दल जल चित्त चञ्चल
- थिर नोहे तिल एक।
- नाहि भव भय़ भोगे हरि हरि
- परम्पद परतेक॥ पावे परि हरि करहोँ कातरि, बरगीत, विकिउत्स
- हाट घाट बहु बाट बिय़पि
- चौगड़े बेढ़लि लङ्का।
- गुरु घन घन घोष घरिषण गर्ज्जन
- श्रवणे जनमय़ शङ्का॥
- धीर बीर शूर शेखर राघव
- रावण तुवा परि झम्पे॥
- सुर नर किन्नर फणधर थर थर
- महीधर तरसि प्रकम्पे॥निमि-नवसिद्ध संबाद, विकिउत्स
- “परर धर्मक निहिंसिबा कदाचित।
- करिबा भूतक दाय़। सकरुण चित्त॥
- हुइबा शान्त चित्त सर्ब धर्मत बत्सल।
- एहि भागवत धर्म जाना महाबल॥’’( भक्ति-प्रदीप )
- नाना कर्म करिबाक करे आलोचन।
- एको कर्म स्थिर नोहे ताक बुलि मन। ६३
- संकल्प बिकल्प कर्म करय़ निश्चय़।
- बुद्धि नाम बुलि ताक जानिबा निर्णय़।
- समस्त कार्यक मइ करोँ बुलि माने।
- अहंकार बुलि ताक जानिबा आपुने। ६४ (अनादि पातन)श्रीमन्त शङ्करदेवर दर्शनत ’मन’र धारणा, ड° सोणाली बरा हाजरिका, कल्पतरु, एकशरण भागवती समाज, नगाँओ, २०२२
- जाति कुल बिचारिय़ा बैरीओ निन्दय़।
- पञ्चम पातकि हुय़ा नरके परय़॥ -- भक्ति-प्रदीप
- पितृ-मातृ आसिले पुत्रर येन सुख।
- सन्त आगमनत दुखीर गुछे दुख॥ १०
- सेहिमते भगवन्त तयु आगमने;
- समस्तरे कुशल होवय़ तावक्षणे॥
- देवतातो करि श्रेष्ठ होन्त साधुजन।
- साधु हन्ते सर्ब्बसुख होवे अनुक्षण॥ ११ (निमि-नवसिद्ध संबाद)
- कोन आत्यन्तिक सुख कहिय़ो आमाते॥ ३८
- असार संसार आत किछु नाहि सिद्धि।
- भकतर सङ्ग अर्द्धक्षणे नवनिधि॥
- कोनबा रहस्य धर्म्म कहिय़ोक ताक।
- यात तुष्ट हैय़ा कृष्णे देन्त आपोनाक॥ ३९
- ताक जानिबाक यदि योग्य हओँ आमि।
- तेबे कहिय़ोक बोलो सबाको प्रणामि॥
- कोन भागवत धर्म्म भक्त बुलि काक।
- कोन माय़ा कोनबा उपाय़े तरे ताक॥ ४ (निमि-नवसिद्ध संबाद)
उद्धृतिसमूह
सम्पादन- हंस छाग मारि यिटो
- रुधिरे कर्दम करे।
- सि येन स्बर्गे याय़
- नर्के नो कोन परे॥कथा गुरु चरित
- यथा तरुर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कन्ध भूजोपशाखाः
- बृक्षर गुरित पानी ढालिलेहे बृक्षर पात आरु फुल जातिष्कार हय़, किन्तु पात आरु ठाल-ठेङुलित पानी ढालिले बृक्षर कोनो अंशइ निटिके। सकलो अंग सतेज स्बस्थ्यबान करिबलै ह’ले आहार ग्रहण करि स्बास्थ्यबान है थकिब लागिब, किन्तु सकलो अंगत अलंकार परिधान करिलेओ अनाहारे थाकिले केतिय़ाओ सन्तुष्टि आहिब नोवारे। एकेदरे एगराकी परम पुरुष ईश्बरक सेवा-भक्ति करिले तेओँर अधीनस्थ सकलोदेव-देवी तुष्ट हय़, किन्तु सेइ देव-देवीसकलर एजन सन्तुष्ट ह’ले अइनसकल सन्तुष्ट नहय़।बरुवा, कनकलाल. प्राचीन कामरूपर इतिहास. pp. २८४.
- ब्राह्मणर चाण्डालर निबिचारि कुल, दातात चोरत दृष्टि समतुल। नीचत साधुत यार भैल एक ज्ञान, ताहाकेसे पण्डित बोलय़ सर्बजान। (कीर्त्तनघोषा)
- स्त्री शूद्र करै यदि आमात भकति। ताहातो कहिबा एहि ज्ञान महामति॥ नारीय़े पुरुषे हैबा एकमति। तेबेसे सिजिब हरित भकति॥ (कीर्त्तनघोषा)
- सकलो प्राणीक देखिबाहा आत्मसम।
उपाय़ मध्यत इटो अति मुख्यतम।महापुरुष शङ्करदेवर नव-बैष्णव धर्मत बिश्बमानवताबाद, रतिमोहन नाथ, कल्पतरु, एकशरण भागवती समाज, नगाँओ, २०२२
- नामारिबे पशुक एरिबे मांस आशा।
- देवको उद्देश्यि पशु नकरिबे हिंसा।महापुरुष शङ्करदेवर नव-बैष्णव धर्मत बिश्बमानवताबाद, रतिमोहन नाथ, कल्पतरु, एकशरण भागवती समाज, नगाँओ, २०२२
- हरिनाम प्रेमरसे अमृत निरिक बान्धि
- गुप्त कुरि थैला देवगणे।
- दय़ालु शङ्करे पाइ तुलि मुद भाङ्गि दिला
- सुखे पान करा सर्ब्बजने॥१०१ (नामघोषा)श्रीमन्त शङ्करदेव
- तीर्थ-ब्रत, तप-जप, याग-योग, मन्त्र एकोवेइ मुक्ति दिब नोवारे৷ सेइकारणे, बिषय़ बासनार परा दूरत थाकि रामर चरणत शरण लै सतते गोबिन्दर नाम जप करिब लागे৷ (बरगीत: नाहि नाहि रमय़ा.....)तामुली, श्री महेन्द्र (२००९). महापुरुष श्रीमन्त शंकरदेवर बाणी. किरण प्रकाशन, धेमाजी.
- घोर आपदीय़ा मरण ओचरते आछे৷ नरकर निकार शुनिलेइ धातु याय़৷ दिने दिने केनेकै आय़ुस टुटि आहिब৷ केतिय़ा यमदूते धरिबहि, ताक कोनेओ गमेइ नापाब৷ सेय़े पाप सागरर परा उद्धार पाबलै राम-नाम लोवाटोवेइ एकमात्र उपाय़৷
शंकरदेवर के बारे में विभिन्न लोगों के विचार
सम्पादन- जगजन तारण देव नारायण
- शङ्कर ताकेरि अंश৷ -- माधबदेव৷साँचा:Cite journal
- शंकरदेव अक्षर जगतेर अब्यय़ पुरुष, दिब्य जीबनेर प्रमूर्त्त बिग्रह.....। पृथिवीर मृत्तिका तार चरण स्पर्शे पबित्र हय़ेछे एक तार मृत्युञ्जय़ी जीबन मानुषके मनुष्यतेर परिपन्थी शक्तिर सबलथेके आलोकित जगते निय़े एसेछे।
- बङ्ग साहित्यिक आरु चिन्ताबिद सुबोध चन्द्र दासयोगेश्बर मराण, मृदुल कुमार दहोटीय़ा, सुरजित् बड़ा, सं. बुढ़ीदिहिं, असम साहित्य सभार स्मृतिग्रन्थ. असम साहित्य सभा. pp. २६८, २६९, २६४, २६६.
- षोल्ल शतिकात गढ़ि तोला एक महत् बैष्णव पुनरुत्थानर माजेरे शंकरदेवे असमीय़ा जनसाधारणक दय़ाशील, सहनशील आरु मानवताबादी करि गढ़ि तुलिछिल। मइ भारतबर्षत रामराज्य सृष्टिर बाबे देशर चुके-कोणे घूरि फुरि यि बाणी बिलाइ फुरिछोँ, सेइ काम महापुरुष शंकरदेवे आजिरे परा प्राय़ चारिश बछर पूर्बते समापन करि थै गैछे। गतिके, आजि मोर असमत करिबलगीय़ा एको नाइ।
- येतिय़ा समग्र देशखन बहु बर्ण आरु गोत्रत बिभक्त हैछिल, तेतिय़ा तेओँ (शंकरदेव) तेओँर सृष्टि कर्मर माजेरे एक भारत आरु एक भारतीय़ संस्कृतिर बाबे आह्बान जनाइछिल।
- बिनोवा भावे
- शंकरदेव पृथिवीर भितरत मुकलि मञ्च आरु मुकलि अभिनय़र जन्मदाता।
- अध्यापक फार्लि रिचमण्ड, आमेरिका
- महत् आरु सु-संस्कृतिसम्पन्न धर्मीय़ संस्कारक शंकरदेव समग्र जीवनजुरि मानुहर माजत शान्तिर माजेरे बिप्लवी दृष्टिभङ्गी प्रचार करिछिल। .... बिश्बभातृत्बर महत् बाणीरे देशबासीर माजत श्रद्धा भक्ति आरु सततार दीक्षा दिछिल।
- ष्टिफेन फाकच्, अष्ट्रेलिय़ा
- सम्पूर्ण जातीय़ गौरवेरे मइ असमर श्रीमन्त शंकरदेवर प्रति मूर दोवाओँ। तेओँ नतुन युगर पथ देखुवाओता। ...... तेओँ भारतर प्रति आगबढ़ोवा चारिटा दानर कथा आमि प्रतिबछरे सोँवरण करोँ।
- ड° मोहन सिं ताबेरय़
- It is Sankardeva who introduced Assam to India And India to Assam.
- पण्डित चर्दार के एम पारिकर
- आटाइतकै उल्लेखयोग्य कथा हैछे, सर्बभारतर एतिय़ाओ अभाव है थका अस्पृश्यता बर्जन करि शंकरदेवे षोड़श शतिकाते सर्बमानवर एखन समस्बत्बर समाज प्रतिष्ठा करिछिल। तेओँ केवल पूर्बरे नहय़, सर्बभारतर एजन महापुरुष।
- काकाचाहेब कानेलकार
- In Assam, Sankardeva was an apostle of Vaisnavism who taught the worship of Krishna, denounced idoletry, sacrificed deity and cast structure of society.
- ड° सर्बेपल्ली राधाकृष्णन
- The greatest name in early Assamese literature is that of Sankardeva and he has left his stand on Assamese literature and culture on Assamese religion and way of life. He was a poet and saint, religious leader and social reformer all in one, and his influence on Assamese life and literature is comparable to that of Tulsi Das for the people of the Upper Gangeitiv Velley.
- सुनीति कुमार चेटार्जी
- Sankardeva was the like the glorious sun under whose warmth of mind, Assam blossomed like a lotus of thousand petals. It is difficult to imagine how deep and wide spread was the influence of Sankardeva on the Cultural renaissance that bust forth in the mediaval Assam.
- ड° बासुदेव चरण आगरवाल
- महापुरुष शंकरदेवे जनताक पुरोहितर अधिपत्यर परा मुक्त करे। शंकरदेव तेओँर जिवन चरित अबिहनेओ अमर।
- नवलपुरी, ’भारत के गौरव’
- असमत यदि शंकरदेवर आविर्भाव नह’लहेँतेन, असमर बिभिन्न भाषाभाषीर ठेला-हेँचात हय़ असमीय़ा भाषा बुर ग’लहेँतेन, नहय़ इ बिकृताकारर ह’लहेँतेन। बैष्णव कबिसकले असमीय़ा भाषाक आश्रय़ करि सर्बजनीन शिक्षा दिय़ार ब्यवस्था करात असमीय़ा भाषा जातीय़ भाषारूपत परिगणित ह’ल।
- ड° बाणीकान्त काकति
- शंकरदेव ये अकल धर्म प्रचारक आछिल एने नहय़, तेओँ एगराकी दूरदर्शी राजनैतिक पुरुषो आछिल।
- सूर्य्य कुमार भूञाश्रीमन्त शङ्करदेवर पञ्चशततम जन्मोत्सव, भाषणावली, बरपेटा, सम्पा: गोबिन्द तालुकदार, कबीन्द्र नाथ दास, लेखक आरु प्रकाशन समिति, बरपेटा
- शंकरदेवर साहित्य प्रकृत जनसाहित्य। एइ साहित्यइ अज्ञलोकक यिदरे आकृष्ट करे महा पण्डित लोकको सेइदरे आकृष्ट करे।
- ड° उपेन्द्र चन्द्र लेखारुश्रीमन्त शङ्करदेवर पञ्चशततम जन्मोत्सव, भाषणावली, बरपेटा, सम्पा: गोबिन्द तालुकदार, कबीन्द्र नाथ दास, लेखक आरु प्रकाशन समिति, बरपेटा
- बिश्बर पण्डित मण्डलीय़े शंकरदेवर बिचित्र रचनावली अध्यय़न करा उचित। तार बाबे तेरार समग्र रचनाराजि इंराजीलै अनुबाद होवा बाञ्छनीय़। बिश्बतहे नालागे, भारतर भितरते एइगराकी महान मनिषीर बिषय़े एतिय़ाओ भालदरे प्रचार होवा नाइ।
- ड° उइलिय़ाम निय़नार्ड स्मिथ। पाटबाउसी, श्रीश्रीशङ्करदेव थान, (१९९९). बाउसी बिलाय़ेत. असम साहित्य सभा. pp. ग-२१.
- महापुरुषीय़ा धर्म, महापुरुषीय़ा समाज ब्यवस्था आरु नामघोषार दरे शास्त्र पृथिवीत बिरल। पृथिवीर साहित्यत नवरसर समावेश, किन्तु शङ्कर-माधबर साहित्यत आरु एटि रस आविष्कृत ह’ल, - “सेवा रस’’।
- आचार्य बिनोवा भावे।
- महान बैष्णव धर्मर प्रवर्तक शंकरदेवे १६०० शतिकात असमीय़ा जातिक दय़ालु, सहिष्णु आरु मानवताबादी करि गढ़ दिछिल।
- महात्मा गान्धी।
- मध्य युगर असमे समग्र भारतीय़ परम्परा रक्षा करा दुजन महत् कबिर जन्म दिले,- शंकरदेव आरु माधबदेव। असमर जातीय़ जीवन आरु सांस्कृतिक जीवनत एइ दुजन महापुरुषर प्रभाव आरु गुरुत्ब आटाइतकै बेछि। अनार्य युगर संस्काराच्छन्न एखन देश, य’त परवर्तीकालत तान्त्रिक, शैव आरु शाक्त धर्म प्रवर्तित हय़,- सेइ देशक शंकरदेव आरु माधबदेवे मानवताबोधर शिखरलै आगबढ़ाइ निय़े।
- ड° सुनीति कुमार चट्टोपाध्याय़।
- श्रीमन्त शंकरदेव असमर एजन युगसिद्ध धर्मगुरु। तेओँ केवल असमरे किय़, जगतर धर्मगुरु, साहित्यर गुरु, कला-संस्कृतिर गुरु। तेओँर प्रवर्तित धर्मत जगतर कल्याणर पथ परिष्कारक।
- बिजय़ हान्सारिय़ा।
- अनुपम उपमा घरुवा योजना पटन्तरयुक्त अबाध गतिर भाषारे चरित्रसमूहर स्बाभाविक जातीय़ता, आदर्शत्ब फुटाइ तोला हैछे। स्बभावर स्बरूप बर्णना, युद्धादिर हुबहु बर्णना आदिय़े कबिर बर्णना शक्तिर बिजय़ घोषणा करिछे। (रुक्मिणीहरण काब्य सम्पर्के दिय़ा मन्तब्य)
- बाणीकान्त काकति कल्पतरु, पृ: नं ५७ एकशरण भागवती समाज, नगाँओ, २०२२
- तेराइ किनो नाजानिछिल, किनो निलिखिछिल। असमीय़ाक तेराइ सकलो दि गैछिल। असमीय़ार गीत, बाद्य, नृत्य, सुर, सञ्चराग, साहित्य, भावना, नाम-कीर्तन, घोषा, बरगीत, अंक, नाट, नामघर, खोल, मृदंग, ताल, भाँजघर, दौलयात्रा, हाटी, धनपूँजि, समाज, धर्म, बिचारनीति, आइन, नैतिक आन्दोलन, अहिंसा, त्याग, भोग, बैराग्यम समाधि सकलो श्रीश्रीशंकरदेवेहे असमीय़ाक दि गैछिल। केवल असमीय़ाइहे सेइबिलाक भालदरे आय़त्त करिब परा नाइ।
- बिष्णुप्रसाद राभा निर्मालि,श्रीमन्त शंकरदेवर ५६८ संख्यक आविर्भाव महोत्सवर स्मरणिका, पृ:नं ६२, बरपेटा रोड, २०१६
- असमीय़ा समाजर प्रकृत बुरञ्जी, असमीय़ा जातीय़तार स्बरूप इतिहास, बास्तवते शङ्करदेवर जीवनी मात्र৷..... अकल असमीय़ा आध्यात्मिक जीवनते नहय़, असमीय़ा जातिर बहुमुखी कर्मप्रतिभा आरु कार्यशक्तिर अन्त नपरा एकोटि उह मात्र शङ्करदेव; जातीय़ प्राण स्पन्दनर एकेटि कम्पन केन्द्र केवल शङ्करदेव৷ (युगनाय़क शङ्करदेव)
- डिम्बेश्बर नेओग৷साँचा:Cite journal
- शङ्करदेवक बाद दि शङ्कर-प्रेमी आरु शङ्कर-बिद्बेषी कारो कोनो परिचय़ नाइ -- एइ सत्यटो असमीय़ा मानुहे यिमान सोनकाले बुजिब पारे सिमानेइ मंगल।
- डॉ० नगेन शइकीय़ा