विष
विष या जहर।
उक्तियाँ
सम्पादन- निर्धनस्य विषं भोगो निस्सत्त्वस्य विषं रणम्।
- अनभ्यासे विषं शास्त्रम् अजीर्णे भोजनं विषम्॥
- निर्धन के लिए भोग-विलास विष है, अशक्त (शक्तिहीन) के लिए युद्ध विष है, अभ्यास न करने पर शास्त्र विष हैं (और) अपच होने पर भोजन विष है।
- एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
- नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥
- हे भाई! इस शरीर को प्राप्त होने का फल विषयभोग नहीं है। (इस जगत् के भोगों की तो बात ही क्या) स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है और अन्त में दुःख देने वाला है। अतः जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषयों में मन लगा देते हैं, वे मूर्ख अमृत को बदलकर विष ले लेते हैं।
- जननी सम जानहिं पर नारी। धन पराव विष ते विष भारी॥ -- तुलसीदास
- (भरत) दूसरे की स्त्री को माता के समान समझते हैं और दूसरे के धन को विष से भी खतरनाक मानते हैं।