"स्वामी विवेकानन्द": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १६२:
* हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं. विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं.
* बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है.
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