"स्वामी विवेकानन्द": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १५६:
* उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो.
* एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो.
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