"स्वामी विवेकानन्द": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १५२:
* एक समस्या आती है, तब मनुष्य अनुभव करता है की थोड़ी-सी मनुष्य की सेवा करना लाखो जप-ध्यान से कही बढाकर है.
* किसी की निंदा ना करें.अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं.अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये.
* उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो.
==बाह्य सूत्र==
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