"भारतेंदु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति ४,७८६:
<big>आना राजा बन्दर का बीच सभा के,
सभा में दोस्तो बन्दर की आमद आमद है।
पंक्ति ४,८०२:
हैं खर्च खर्च तो आमद नहीं खर-मुहरे की
उसी बिचारे नए खर की आमद आमद है ।। १</big>
<big>बोले जवानी राजा बन्दर के बीच अहवाल अपने के,
पाजी हूँ मं कौम का बन्दर मेरा नाम।
पंक्ति ४,८१८:
लाओ जहाँ को मेरे जल्दी जाकर ह्याँ।
सिर मूड़ैं गारत करैं मुजरा करैं यहाँ ।। २</big>
<big>आना शुतुरमुर्ग परी का बीच सभा में,
आज महफिल में शुतुरमुर्ग परी आती है।
पंक्ति ४,८४६:
जाते ही लूट लूँ क्या चीज खसोटूँ क्या शै।
बस इसी फिक्र में यह सोच भरी आती है ।। ३</big>
<big>गजल जवानी शुतुरमुर्ग परी हसन हाल अपने के,
गाती हूँ मैं औ नाच सदा काम है मेरा।
पंक्ति ४,८७८:
जर मजहबो मिल्लत मेरा बन्दी हूँ मैं जर की।
जर ही मेरा अल्लाह है जर राम है मेरा ।। ४</big>
<big>(छन्द जबानी शुतुरमुर्ग परी)
राजा बन्दर देस मैं रहें इलाही शाद।
Line ४,८९५ ⟶ ४,८९४:
रूपया मिलना चाहिये तख्त न मुझको ताज।
जग में बात उस्ताद की बनी रहे महराज ।। ५</big>
<big>ठुमरी जबानी शुतुरमुर्ग परी के,
आई हूँ मैं सभा में छोड़ के घर।
Line ४,९११ ⟶ ४,९१०:
बन्दर जर हो तो इन्दर है।
जर ही के लिये कसबो हुनर है ।। ६</big>
<big>गजल शुतुरमुर्ग परी की बहार के मौसिम में,
आमद से बसंतों के है गुलजार बसंती।
Line ४,९३५ ⟶ ४,९३४:
तहवील जो खाली हो तो कुछ कर्ज मँगा लो।
जोड़ा हो परी जान का तैयार बसंती ।। ७<big>
<big>होली जबानी शुतुरमुर्ग परी के,
पा लागों कर जोरी भली कीनी तुम होरी।
Line ४,९५३ ⟶ ४,९५२:
लगी सलोनो हाथ चरहु अब दसमी चैन करो री ।।
सबै तेहवार भयो री ।। ८</big>
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