"भारतेंदु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर

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<big>=== [[ प्रेमजोगिनी ]] (१८७५,प्रथम अंक में केवल चार अंक या गर्भांक,नाटिका)===
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<big>बैठ कर सैर मुल्क की करना
 
यह तमाशा किताब में देखा ।।</big>
 
 
पंक्ति ३,७५४:
 
 
<big> और भी-
 
जिन तृन सम किय जानि जिय कठिन जगत जंजाल।
पंक्ति ३,८२४:
 
 
<big>पहिले गर्भांक के पात्र
 
टेकचंद: एक महाजन बनिये
पंक्ति ४,०३१:
 
 
<big>दूसरे गर्भांक के पात्रा
 
दलाल
पंक्ति ४,२८०:
 
 
(इति गैबी ऐबी नामक दूसरा गर्भ अंक)</big>
 
 
पंक्ति ४,२८९:
 
 
<big> स्थान-मुगलसराय का स्टेशन
 
(मिठाई वाले, खिलौने वाले, कुली और चपरासी इधर उधर फिरते हैं।
पंक्ति ४,३८४:
 
(स्टेशन का घंटा बजता है और जवनिका गिरती है)
 
 
 
इति प्रतिच्छवि-वाराणसी नाम तीसरा गर्भाकं
 
समाप्त हुआ </big>
 
 
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<big>स्थान-बुभुक्षित दीक्षित की बैठक
 
(बुभुक्षित दीक्षित, गप्प पंडित, रामभट्ट, गोपालशास्त्री, चंबूभट्ट, माधव शास्त्री आदि लोग पान बीड़ा खाते और भाँग बूटी की तजबीज करते बैठे हैं;
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(इति) घिस्सधिसद्विज कृत्य विकर्तनी नाम चतुर्थ गर्भाकं </big>