"भारतेंदु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर

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=== [[ नये ज़माने की मुकरी ]] ===
 
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<big>नये जमाने की मुकरी</big>
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सब गुरुजन को बुरो बतावै ।
 
अपनी खिचड़ी अलग पकावै ।।
 
भीतर तत्व न झूठी तेजी ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेजी ।।
 
 
 
 
 
Line ४,६३८ ⟶ ४,६३६:
तीन बुलाए तेरह आवैं ।
 
निज निज बिपता रोइ सुनावैं ।।
 
आँखौ फूटे भरा न पेट ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं ग्रैजुएट ।।
 
 
 
 
 
Line ४,६५१ ⟶ ४,६४६:
सुंदर बानी कहि समुझावै ।
 
बिधवागन सों नेह बढ़ावै ।।
 
दयानिधान परम गुन-आगर ।
 
सखि सज्जन नहिं विद्यासागर ।।
 
 
 
 
 
Line ४,६६४ ⟶ ४,६५६:
सीटी देकर पास बुलावै ।
 
रुपया ले तो निकट बिठावै ।।
 
ले भागै मोहिं खेलहिं खेल ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं सखि रेल ।।
 
 
 
 
 
Line ४,६७७ ⟶ ४,६६६:
धन लेकर कछु काम न आव ।
 
ऊँची नीची राह दिखाव ।।
 
समय पड़े पर सीधै गुंगी ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं सखि चुंगी ।।
 
 
 
 
 
Line ४,६९० ⟶ ४,६७६:
मतलब ही की बोलै बात ।
 
राखै सदा काम की घात ।।
 
डोले पहिने सुंदर समला ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं सखि अमला ।।
 
 
 
 
 
Line ४,७०३ ⟶ ४,६८६:
रूप दिखावत सरबस लूटै ।
 
फंदे मैं जो पड़ै न छूटै ।।
 
कपट कटारी जिय मैं हुलिस ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस ।।
 
 
 
 
 
Line ४,७१६ ⟶ ४,६९६:
भीतर भीतर सब रस चूसै ।
 
हँसि हँसि कै तन मन धन मूसै ।।
 
जाहिर बातन मैं अति तेज ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेज ।।
 
 
 
 
 
Line ४,७२९ ⟶ ४,७०६:
सतएँ अठएँ मों घर आवै ।
 
तरह तरह की बात सुनाव ।।
 
घर बैठा ही जोड़ै तार ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं अखबार ।।
 
 
 
 
 
Line ४,७४२ ⟶ ४,७१६:
एक गरभ मैं सौ सौ पूत ।
 
जनमावै ऐसा मजबूत ।।
 
करै खटाखट काम सयाना ।
 
सखि सज्जन नहिं छापाखाना ।।
 
 
 
 
 
Line ४,७५५ ⟶ ४,७२६:
नई नई नित तान सुनावै ।
 
अपने जाल मैं जगत फँसावै ।।
 
नित नित हमैं करै बल-सून ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं कानून ।।
 
 
 
 
 
Line ४,७६८ ⟶ ४,७३६:
इनकी उनकी खिदमत करो ।
 
रुपया देते देते मरो ।।
 
तब आवै मोहिं करन खराब ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं खिताब ।।
 
 
 
 
 
Line ४,७८१ ⟶ ४,७४६:
लंगर छोड़ि खड़ा हो झूमै ।
 
उलटी गति प्रति कूलहि चूमै ।।
 
देस देस डोलै सजि साज ।
 
क्यों सखि सज्जन नहीं जहाज ।।
 
 
 
 
 
Line ४,७९४ ⟶ ४,७५६:
मुँह जब लागै तब नहिं छूटै ।
 
जाति मान धन सब कुछ लूटै ।।
 
पागल करि मोहिं करे खराब ।
 
क्यों सखि सज्जन नहिं सराब ।।