"भारतेंदु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर
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=== [[ नये ज़माने की मुकरी ]] ===
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<big>नये जमाने की मुकरी</big>
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सब गुरुजन को बुरो बतावै ।
भीतर तत्व न झूठी तेजी ।
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तीन बुलाए तेरह आवैं ।
आँखौ फूटे भरा न पेट ।
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सुंदर बानी कहि समुझावै ।
दयानिधान परम गुन-आगर ।
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सीटी देकर पास बुलावै ।
ले भागै मोहिं खेलहिं खेल ।
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धन लेकर कछु काम न आव ।
समय पड़े पर सीधै गुंगी ।
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मतलब ही की बोलै बात ।
डोले पहिने सुंदर समला ।
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रूप दिखावत सरबस लूटै ।
कपट कटारी जिय मैं हुलिस ।
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भीतर भीतर सब रस चूसै ।
जाहिर बातन मैं अति तेज ।
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सतएँ अठएँ मों घर आवै ।
घर बैठा ही जोड़ै तार ।
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एक गरभ मैं सौ सौ पूत ।
करै खटाखट काम सयाना ।
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नई नई नित तान सुनावै ।
नित नित हमैं करै बल-सून ।
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इनकी उनकी खिदमत करो ।
तब आवै मोहिं करन खराब ।
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लंगर छोड़ि खड़ा हो झूमै ।
देस देस डोलै सजि साज ।
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मुँह जब लागै तब नहिं छूटै ।
पागल करि मोहिं करे खराब ।
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