"अटल बिहारी वाजपेयी": अवतरणों में अंतर

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full poem
पंक्ति १:
'''एक बरस बीत गया'''
झुलसाता जेठ मॉस
 
झुलासाता जेठ मास
 
शरद चांदनी उदास
 
सिसकी भरते सावन का
 
अंतर्घर्टअंतर्घट रीत गया
 
एक बरस बीत गया
 
सीकचों मे सिमटा जग
 
किंतु विकल प्राण विहग
 
धरती से अम्बर तक
 
गूंज मुक्ति गीत गया
 
एक बरस बीत गया
 
पथ निहारते नयन
 
गिनते दिन पल छिन
 
लौट कभी आएगा
 
मन का जो मीत गया
 
एक बरस बीत गया
 
 
(कविता - एक बरस बीत गया)