"नीति के वचन": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १:
अति सर्वत्र वर्जयेत(सब जगह अति करने से बचना चाहिये)
अति का भला न बोलना, अतिकी भली न चूप । <br/>
अतिका भला न बरसना अतिकि भली न धूप ।
धर्म का तत्व समझो और उसे गुनो! जो अपने लिये प्रतिकूल हो, वैसा आचरण या व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये। <br/>
(श्रूयताम धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवानुवर्यताम । <br/>
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषाम न समाचरेत ।।)
दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिये। ( शठे शाठ्यम समाचरेत् ) <br/>
-- चाणक्य <br/>
[[श्रेणी:लोकोक्तियाँ]]
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