"घाघ की कहावतें": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति २:
 
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।<br>
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूरQQतूर।।
 
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
 
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। <br>
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाएQQजाए।।
 
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
 
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय। <br>
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होयQQहोय।।
 
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
 
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। <br>
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहिQQअघाहि।।
 
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
 
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय। <br>
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोयQQकोय।।
 
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।
 
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय। <br>
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोयQQकोय।।
 
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
 
पूस मास दसमी अंधियारी। <br> बदली घोर होय अधिकारी। <br>
सावन बदि दसमी के दिवसे। <br> भरे मेघ चारो दिसि बरसेQQबरसे।।
 
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी।
पंक्ति ३८:
 
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज। <br>
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काजQQकाज।।
 
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
 
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। <br>
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूतQQबहूत।।
 
यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
पंक्ति ५०:
 
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात। <br>
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकालQQसुकाल।।
 
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
 
असुनी नलिया अन्त विनासै। <br>
गली रेवती जल को नासैQQनासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो। <br>
कृतिका बरसै अन्त बहूतोQQबहूतो।।
 
यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
 
आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत। <br>
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सतQQसत।।
 
आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।
पंक्ति ६९:
 
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय। <br>
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खायQQखाय।।
 
यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
 
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि। <br>
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरिQQबहोरि।।
 
उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है।
 
खनिके काटै घनै मोरावै। <br>
तव बरदा के दाम सुलावैQQसुलावै।।
 
ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है।
 
हस्त बरस चित्रा मंडराय। <br> घर बैठे किसान सुख पाएQQपाए।।
 
हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं।
 
हथिया पोछि ढोलावै। <br> घर बैठे गेहूं पावैQQपावै।।
 
यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।
 
जब बरखा चित्रा में होय। <br> सगरी खेती जावै खोयQQखोय।।
चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।
 
पंक्ति ९८:
पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।
 
जो कहुं मग्घा बरसै जल। <br> सब नाजों में होगा फलQQफल।।
मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं।
 
जब बरसेगा उत्तरा। <br> नाज न खावै कुत्तराQQकुत्तरा।।
 
यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।
 
दसै असाढ़ी कृष्ण की, मंगल रोहिनी होय। <br>
सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोयQQकोय।।
 
यदि असाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी को मंगलवार और रोहिणी पड़े तो धान इतना सस्ता बिकेगा कि कोई हाथ से भी न छुएगा।
 
असाढ़ मास आठें अंधियारी। <br>
जो निकले बादर जल धारीQQधारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़। <br>
साढ़े तीन मास वर्षा का जोगQQजोग।।
 
यदि असाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी।
 
असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। <br>
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्दQQअनन्द।।
 
यदि आसाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।
पंक्ति १२५:
 
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर। <br>
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूरQQनूर।।
 
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा।
पंक्ति १३१:
==जोत==
 
गहिर न जोतै बोवै धान। <br> सो घर कोठिला भरै किसानQQकिसान।।
गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।
 
गेहूं भवा काहें। <br> असाढ़ के दुइ बाहेंQQबाहें।।
गेहूं भवा काहें। <br> सोलह बाहें नौ गाहेंQQगाहें।।
गेहूं भवा काहें। <br> सोलह दायं बाहेंQQबाहें।।
गेहूं भवा काहें। <br> कातिक के चौबाहेंQQचौबाहें।।
 
गेहूं पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।
 
गेहूं बाहें। <br> धान बिदाहेंQQबिदाहें।।
 
गेहूं की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान होने के चार दिन बाद जोतवा देने) से अच्छी होती है।
 
गेहूं मटर सरसी। <br> औ जौ कुरसीQQकुरसी।।
 
गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।
 
गेहूं बाहा, धान गाहा। <br> ऊख गोड़ाई से है आहाQQआहा।।
 
जौ-गेहूं कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।
पंक्ति १६०:
 
पुरुवा रोपे पूर किसान। <br>
आधा खखड़ी आधा धानQQधान।।
 
पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है।
 
पुरुवा में जिनि रोपो भैया। <br>
एक धान में सोलह पैयाQQपैया।।
 
पूर्वा नक्षत्र में धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा।
पंक्ति १७१:
==बोवाई==
 
कन्या धान मीनै जौ। <br> जहां चाहै तहंवै लौQQलौ।।
 
कन्या की संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए।
 
कुलिहर भदई बोओ यार। <br> तब चिउरा की होय बहारQQबहार।।
 
कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है-अर्थात् वह धान उपजता है।
 
आंक से कोदो, नीम जवा। <br> गाड़र गेहूं बेर चनाQQचना।।
 
यदि मदार खूब फूलता है तो कोदो की फसल अच्छी है। नीम के पेड़ में अधिक फूल-फल लगते है तो जौ की फसल, यदि गाड़र (एक घास जिसे खस भी कहते हैं) की वृद्धि होती है तो गेहूं बेर और चने की फसल अच्छी होती है। <br>
 
आद्रा में जौ बोवै साठी। <br>
दु:खै मारि निकारै लाठीQQलाठी।।
 
जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
 
आद्रा बरसे पुनर्वसुजाय, दीन अन्न कोऊ न खायQQखाय।।
 
यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा।
 
आस-पास रबी बीच में खरीफ। <br>
नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफQQहरीफ।।
 
खरीफ की फसल के बीच में रबी की फसल अच्छी नहीं होती।