"दया": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १:
* ''संसारे मानुष्यं सारं मानुष्ये च कौलीन्यम् ।
: ''कौलिन्ये धर्मित्वं धर्मित्वे चापि सदयत्वम् ॥
: संसार में मनुष्यत्व, मनुष्यत्व में खानदानीकुलीनता, खानदानीकुलीनता में धर्मिष्टत्वधर्मित्व, और धर्मिष्टत्वधर्मित्व में भी दया का होना, सार (रुप) है ।
 
* ''न सा दीक्षा न सा भिक्षा न तद्दानं न तत्तपः ।
पंक्ति ९:
* ''सर्वे वेदा न तत् कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत ।
: ''सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च तत् कुर्यात् प्राणिनां दया ॥
: हे भारत ! सब वेद, सब यज्ञ, सब तीर्थ, सब अभिषेक – जो नहिनहीं कर सकता है, वह (भी) प्राणियों पर दया तो कर हिही सकता है ।
 
* ''दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि ।
पंक्ति २१:
* ''दयाङ्गना सदा सेव्या सर्वकामफलप्रदा ।
: ''सेवितासौ करोत्याशु मानसं करुणामयम् ॥
: सब इच्छित फल देनेवाली दयांगना का सेवन करना चाहिए । यदि सेवन किया जाय तो तुरंत हिही वह मन को करुणामय बनाता है ।
 
* ''लावण्यरहितं रुपं विद्यया वर्जितं वपुः ।
: ''जलत्यक्तं सरो भाति नैव धर्मो दयां विना ॥
: लावण्यरहित रुप, विद्यारहित शरीर, जलरहित तालाब शोभा नहिनहीं देते । उसी प्रकार दयारहित धर्म भी शोभा नहिनहीं देता ।
 
* ''न च विद्यासमो बन्धुः न च व्याधिसमो रिपुः ।
पंक्ति ३३:
* ''धर्मो जीवदयातुल्यो न क्वापि जगतीतले ।
: ''तस्मात् सर्वप्रयत्नेन कार्या जीवदयाऽङ्गिभिः ॥
: इस दुनियासंसार में जीवदया के तुल्य धर्म इतर कहीं भी नहिनहीं है। अर्थात्इसलिये आपने सर्व प्रयत्न द्वारा जीवदया करनी चाहिए।
 
* ''दयां विना देव गुरुक्रमार्चाः
पंक्ति ३९:
: ''दानानि शास्त्राध्ययनानि सर्वं
: ''सैन्यं गतस्वामि यथा तथैव ॥
: देव और गुरुपूजा, तप, सर्वइंद्रियदमन, दान और शास्त्राध्ययन – ये सब क्रिया दया के बगैरबिना वैसे ही हैं, जैसी कि सेनापति बगैर काके सैन्यबिना सेना।
 
* दया सबसे बड़ा धर्म है। -- [[महाभारत]]
पंक्ति २१६:
== इन्हें भी देखें ==
* [[धर्म]]
* [[अहिंसा]]
"https://hi.wikiquote.org/wiki/दया" से प्राप्त