"उत्साह": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति ४:
: मन्त्र से अर्थ (क्या करना चाहिये, क्या नहीं) का निर्धारण होता है, प्रभाव से प्रारम्भ होता है, उत्साह से कार्य का निर्वहन (आगे बढ़ाते रहना) होता है।
* ''उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं
: ''शूरं कृतज्ञं दृढ़सौहृदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः॥
: जो उत्साह से भरा हुआ है, आलसी नहीं है, कार्य की विधि को जानता है, व्यसनों से से मुक्त है, पराक्रमी है, कृतज्ञ और लोगों की भलाई चाहने वाला है उसके पास लक्ष्मी (धन-संपदा) स्वयं चलकर निवास करने आती हैं।
पंक्ति ४३:
* अपने उत्साह को दूसरों की नकारात्मकता और भय से बचाएं।
== इन्हें भी देखें ==
* [[साहस]]
* [[कर्म]]
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