"दया": अवतरणों में अंतर

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: ''संसारे मानुष्यं सारं मानुष्ये च कौलीन्यम् ।
* दया सबसे बड़ा धर्म है। -- महाभारत
: ''कौलिन्ये धर्मित्वं धर्मित्वे चापि सदयत्वम् ॥
:संसार में मनुष्यत्व, मनुष्यत्व में खानदानी, खानदानी में धर्मिष्टत्व, और धर्मिष्टत्व में दया का होना, सार (रुप) है ।
 
* ''न सा दीक्षा न सा भिक्षा न तद्दानं न तत्तपः ।
* दया दोहरी कृपा है। इसकी कृपा दाता पर भी होती है और पात्र पर भी। -- शेक्सपियर
: ''न तद् ध्यानं न तद् मौनं दया यत्र न विद्यते ॥
: ''दया के बगैर दीक्षा, भिक्षा, दान, तप, ध्यान, और मौन सब निरर्थक है ।
: ''सर्वे वेदा न तत् कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत ।
: ''सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च तत् कुर्यात् प्राणिनां दया ॥
:हे भारत ! सब वेद, सब यज्ञ, सब तीर्थ, सब अभिषेक – जो नहि कर सकता है, वह (भी) प्राणियों पर दया तो कर हि सकता है ।
 
* ''दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि ।
: ''एते वेदा अवेदाः स्यु र्दया यत्र न विद्यते ॥
: दयाहीन काम निष्फल है, उस में धर्म नहि । जहाँ दया न हो, वहाँ वेद भी अवेद बनते हैं ।
 
* ''अहिंसा लक्षणो धर्मोऽधर्मश्च प्राणिनां वधः ।
: ''तस्मात् धर्मार्थिभिः लोकैः कर्तव्या प्राणिनां दया ॥
:धर्म का लक्षण अहिंसा है, और प्राणियों का वध अधर्म है । अर्थात् धर्म की इच्छावाले ने प्राणियों पर दया करनी चाहिए ।
 
* ''दयाङ्गना सदा सेव्या सर्वकामफलप्रदा ।
: ''सेवितासौ करोत्याशु मानसं करुणामयम् ॥
:सब इच्छित फल देनेवाली दयांगना का सेवन करना चाहिए । यदि सेवन किया जाय तो तुरंत हि वह मन को करुणामय बनाता है ।
 
* ''लावण्यरहितं रुपं विद्यया वर्जितं वपुः ।
: ''जलत्यक्तं सरो भाति नैव धर्मो दयां विना ॥
:लावण्यरहित रुप, विद्यारहित शरीर, जलरहित तालाब शोभा नहि देते । उसी प्रकार दयारहित धर्म भी शोभा नहि देता ।
 
* ''न च विद्यासमो बन्धुः न च व्याधिसमो रिपुः ।
: ''न चापत्यसमो स्नेहः न च धर्मो दयापरः ॥
:विद्या जैसा बंधु नहि, व्याधि जैसा कोई शत्रु नहि, पुत्र जैसा स्नेह नहि, और दया से श्रेष्ठ कोई धर्म नहि ।
 
* ''धर्मो जीवदयातुल्यो न क्वापि जगतीतले ।
: ''तस्मात् सर्वप्रयत्नेन कार्या जीवदयाऽङ्गिभिः ॥
:इस दुनिया में जीवदया के तुल्य धर्म इतर कहीं भी नहि । अर्थात् आपने सर्व प्रयत्न द्वारा जीवदया करनी चाहिए।
 
* ''दयां विना देव गुरुक्रमार्चाः
: ''तपांसि सर्वेन्द्रिययन्त्रणानि
: ''दानानि शास्त्राध्ययनानि सर्वं
: ''सैन्यं गतस्वामि यथा तथैव ॥
:देव और गुरुपूजा, तप, सर्वइंद्रियदमन, दान और शास्त्राध्ययन – ये सब क्रिया दया के बगैर वैसे हैं, जैसी कि सेनापति बगैर का सैन्य ।
 
* दया सबसे बड़ा धर्म है। -- [[महाभारत]]
 
* दया दोहरी कृपा है। इसकी कृपा दाता पर भी होती है और पात्र पर भी। -- [[शेक्सपियर]]
 
* जहाँ दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप।
: जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप॥ - कबीरदास[[कबीर]]दास
 
* दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
: तुलसी दया न छाड़िए, जब लग घट में प्राण॥ - गोस्वामी [[तुलसीदास]]
 
* दया मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। -- [[प्रेमचन्द]]
 
* दया के छोटे-छोटे से कार्य, प्रेम के जरा-जरा से शब्द हमारी पृथ्वी को स्वर्गोपम बना देते हैं। -- जूलिया कार्नी
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