"आरम्भ": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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पंक्ति १:
* '' यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य विहीनता ।
: ''नयविक्रम संयोगस्तत्र श्रीरचला ध्रुवम् ॥'' -- पञ्चतन्त्र
: जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है।
* ''शुभस्य शीघ्रम्'' (शुभ कार्य शीघ्रातशीघ्र आरम्भ करना चाहिये।)
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