"उत्साह": अवतरणों में अंतर
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* राज्य तीन शक्तियों के अधीन होता है- मन्त्र, प्रभाव और उत्साह।
* ''मन्त्रेण हि विनिश्चयोऽर्थानाम् प्रभावेण प्रारम्भः, उत्साहेन निर्वहणम्।''
: मन्त्र से अर्थ (क्या करना चाहिये, क्या नहीं) का निर्धारण होता है, प्रभाव से प्रारम्भ होता है, उत्साह से कार्य का निर्वहन (आगे बढ़ाते रहना) होता है।
* ''उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं
: ''शूरं कृतज्ञं दृढ़सौहृदं च लक्ष्मीः स्वयं याति
: जो उत्साह से भरा हुआ है, आलसी नहीं है, कार्य की विधि को जानता है, व्यसनों से से मुक्त है, पराक्रमी है, कृतज्ञ और लोगों की भलाई चाहने वाला है उसके पास लक्ष्मी (धन-संपदा) स्वयं चलकर निवास करने आती हैं।
* ''यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य
: ''नयविक्रम संयोगस्तत्र श्रीरचला
: जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है।
* ''उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं
: ''सोत्साहस्य च लोकेषु न किञ्चिदपि
: हे आर्य, उत्साह बलवान है, उत्साह से बड़ा बल कोई नहीं है। जिसके पास उत्साह है उसको संसर में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
* जिनमें उत्साह नहीं होता, मित्र भी उनके दुश्मन हो जाते हैं। जिनमें उत्साह हो, शत्रु भी उनकी मित्रता स्वीकार करते हैं।
* अधिकांश अवसरों पर साहस को परीक्षा द्वारा जीवित रखना होता है। संतुलित उत्साह सफलता की कुंजी है।
* भय का जो स्थान दुःख वर्ग में है, उत्साह का वही स्थान आनन्द वर्ग में है।
* बिना उत्साह के कभी किसी उच्च लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती।
* दुर्लभ कुछ भी नहीं, यदि उत्साह का साथ न छोड़ा जाए।
* उत्साह आदमी की मान्यशीलता का पैमाना हैं।
* उत्साहित होने का नाटक कीजिये और आप उत्साहित हो जायेंगे।
* उत्साह एक अलौकिक शांति है।
* यदि आप उत्साही बनना चाहते हैं, उत्साहित होकर काम करें।
* एक उत्साही टीम के साथ आप लगभग सब कुछ हासिल कर सकते हैं।
* आपके सबसे महत्वपूर्ण क्षमता, उत्साह के साथ जीतना और उसी उत्साह के साथ हारने के लिए भी तैयार रहने की क्षमता है।
* जीवन को बच्चे के जैसे आश्चर्य और उत्साह के साथ जियो।
* कोई मनुष्य कितना भाग्यशाली होगा, यह उसके उत्साह के आधार पर हम जान सकते हैं।
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