"प्रकृति": अवतरणों में अंतर

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*''अवश्याय-निपातेन किद्बिचत्प्रक्लिन्नशाद्वला।
:''वनानां शोभते भूमिर्निविष्टतरूणातपा॥
:''स्पृशंस्तु विपुलं शीतमुदकं द्विरद: सुखम्।
:''अत्यन्ततृषितो वन्य: प्रतिसंहरते करम्ड्ड
:''अवश्याय-तमोनद्धा नीहार-तमसावृता:।
:''प्रसुप्ता इव लक्ष्यंते विपुष्पा वनराजय:॥
:''वाष्पसन्छन्नसलिला रुतविज्ञेयसारसा:।
:''हिमार्द्रबालुकैस्तीरै: सरितो भांति सांप्रतम्ड्ड
:''जरा-जर्जरितै: पद्मै: शीर्णकेशरकर्णिका:।
:''नालशेषैर्हिमधवस्तैर्न भांति कमलाकरा:॥'' -- [[वाल्मीकि]], का हेमन्त वर्णन
: अर्थ : वन की भूमि जिसकी हरी-हरी घास ओस गिरने से कुछ-कुछ गीली हो गई है, तरुण धूप के पड़ने से कैसी शोभा दे रही है। अत्यंत प्यासा जंगली हाथी बहुत शीतल जल के स्पर्श से अपनी सूँड़ सिकोड़ लेता है। बिना फूल के वन-समूह कुहरे के अंधाकार में सोए से जान पड़ते हैं। नदियाँ, जिनका जल कुहरे से ढँका हुआ है और जिनमें सारस पक्षियों का पता केवल उनके शब्द से लगता है, हिम से आर्द्र बालू के तटों से ही पहचानी जाती हैं। कमल, जिनके पत्ते जीर्ण होकर झड़ गए हैं, जिनकी केसर-कणिकाएँ टूट-फूटकर छितरा गई हैं, पाले से धवस्त होकर नालमात्र खड़े हैं।
 
* अगर कोई तरीका दूसरे तरीके से बेहतर है तो आप निश्चित रूप से कह सकते हैं कि वो प्रकृति का तरीका है। -- अरस्तु