"उत्साह": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति २:
 
* ''मन्त्रेण हि विनिश्चयोऽर्थानाम् प्रभावेण प्रारम्भः, उत्साहेन निर्वहणम्।'' -- दशकुमारचरितम्
: मन्त्र से अर्थ (क्या करना चाहिये, क्या नहीं) का निर्धारण होता है, प्रभाव से प्रारम्भ होता है, उत्साह से कार्य का निर्वहन (आगे बढ़ाते रहना) होता है।
 
* ''उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वासक्तं ।
: ''शूरं कृतज्ञं दृढ़सौहृदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ॥
: जो उत्साह से भरा हुआ है, आलसी नहीं है, कार्य की विधि को जानता है, व्यसनों से से मुक्त है, पराक्रमी है, कृतज्ञ और लोगों की भलाई चाहने वाला है उसके पास लक्ष्मी (धन-संपदा) स्वयं चलकर निवास करने आती हैं।
 
* ''यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य विहीनता ।
पंक्ति १२:
: जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है।
 
* ''उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम् ।
: ''सोत्साहस्य च लोकेषु न किञ्चिदपि दुर्लभम् ॥ -- वाल्मीकि रामायण
: हे आर्य, उत्साह बलवान है, उत्साह से बड़ा बल कोई नहीं है। जिसके पास उत्साह है उसको संसर में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।