"प्रेमचन्द": अवतरणों में अंतर

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* सुन्दरता को आभूषणों की आवश्यकता नहीं होती। मृदुता आभूषणों का भार वहन नहीं कर सकती।
* कायरता के समान ही साहस भी संक्रामक होता है।
* '''<u>जीवन में सफल होने के लिए आपको शिक्षा की आवश्यकता होती है, साक्षरता और उपाधियों की नहीं।</u>'''
* सत्यता, प्रेम की पहली सीढ़ी है।
* विश्वास, विश्वास को उत्पन्न करता है और अविश्वास, अविश्वास को। यह स्वाभाविक है।
पंक्ति १४:
* विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला।
* आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है।
* '''सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है।'''
* अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है।
* आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है।
पंक्ति ५९:
* दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते।
 
* मै एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।
 
* निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है।
 
* बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता।
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* कर्तव्य कभी आग और पानी की परवाह नहीं करता । कर्तव्य~पालन में ही चित्त की शांति है ।
 
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* नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है ।
 
* आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है ।
* अन्याय में सहयोग देना, अन्याय करने के ही समान है ।
 
* आत्म सम्मान की रक्षा, हमारा सबसे पहला धर्म है ।
 
* मनुष्य कितना ही हृदयहीन हो, उसके ह्रदय के किसी न किसी कोने में पराग की भांति रस छिपा रहता है। जिस तरह पत्थर में आग छिपी रहती है, उसी तरह मनुष्य के ह्रदय में भी ~ चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो, उत्कृष्ट और कोमल भाव छिपे रहते हैं।
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* साक्षरता अच्छी चीज है और उससे जीवन की कुछ समस्याएं हल हो जाती है, लेकिन यह समझना कि किसान निरा मुर्ख है, उसके साथ अन्याय करना है।
 
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* दुनिया में विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं खुला है।
 
* हम जिनके लिए त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा ना रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं। चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो। त्याग की मात्रा जितनी ज्यादा होती है, यह शासन भावना उतनी ही प्रबल होती है।
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* क्रोध अत्यंत कठोर होता है। वह देखना चाहता है कि मेरा एक~एक वाक्य निशाने पर बैठा है या नहीं। वह मौन को सहन नहीं कर सकता। ऐसा कोई घातक शस्त्र नहीं है जो उसकी शस्त्रशाला में न हो, पर मौन वह मन्त्र है जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती है।
 
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* कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुबाब दिखाने से नहीं।
 
* ।।
* सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते हैं।
 
* दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है।
 
* ऐश की भूख रोटियों से कभी नहीं मिटती। उसके लिए दुनिया के एक से एक उम्दा पदार्थ चाहिए।
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* जब हम अपनी भूल पर लज्जित होते हैं, तो यथार्थ बात अपने आप ही मुंह से निकल पड़ती है ।
 
* अपनी भूल अपने ही हाथ सुधर जाए तो,यह उससे कहीं अच्छा है कि दूसरा उसे सुधारे ।
 
* विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला।
 
* आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है।
 
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* सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है।
 
* '''<u>डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है</u>'''
 
* चिंता एक काली दिवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती।