"वेद": अवतरणों में अंतर
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'''वेद''' प्राचीनतम हिन्दू धर्मग्रन्थ हैं। ये विश्व के सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं जो नष्ट होने से बचे हुए हैं। चार वेद हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ।
==ऋग्वेद की सूक्तियाँ==
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* मेघ हमें और हमारी प्रजा के लिए सुखकर हों।
* इस ग्राम (
* समस्त दिशाओं से अच्छाई का प्रवाह मेरी तरफ हो।
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: भावार्थ - उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे।
*'' न यस्य हन्यते सखा न जीयते कदाचन ॥'' -- ( ऋ०१०/१५२/१
: ईश्वर के भक्त को न कोई नष्ट कर सकता है न जीत सकता है।
*'' तस्य ते भक्तिवांसः स्याम ॥'' -- ( अ० ६/७९/३)
: हे प्रभो हम तेरे भक्त हो।
*'' स नः पर्षद् अतिद्विषः ॥'' -- ( अ० ६/३४/१)
: ईश्वर हमें द्वेषों से पृथक कर दे।
*'' न विन्धेऽस्य सुष्टुतिम् ॥'' -- ( ऋ० १/७/७)
: मैं परमात्मा की स्तुति का पार नहीं पाता।
*'' यत्र सोमः सदमित् तत्र भद्रम् ॥'' -- ( अ० ७/१८/२)
: जहां परमेश्वर की ज्योति है वहां सदा ही कल्याण है।
*'' महे चन त्वामद्रिवः परा शुक्लाय देयाम् ॥'' -- ( ऋ० ८/१/५)
: हे ईश्वर ! मैं तुझे किसी कीमत पर भी न छोडूँ।
*'' स एष एक एकवृदेक एव ॥'' -- ( अ० १३/४/२०)
: वह ईश्वर एक और सचमुच एक ही है।
*'' न रिष्यते त्वावतः सखा ॥'' -- ( ऋ०१/९१/८)
: ईश्वर ! आपका मित्र कभी नष्ट नहीं होता।
*'' ओ३म् क्रतो स्मर ॥'' -- ( य० ४०/१५)
: हे कर्मशील मनुष्य!तू ओ३म् का स्मरण कर।
*'' एको विश्वस्य भुवनस्य राजा ॥'' -- ( ऋ०६/३६/४)
: वह सब लोकों का एक ही स्वामी है।
*'' ईशावास्यमिदं सर्वम् ॥'' -- ( य०। ४०/१)
: इस सारे जगत में ईश्वर व्याप्त है।
*'' त्वमस्माकं तव स्मसि ॥'' -- ( ऋ०८/९२/३२)
: प्रभु ! तू हमारा है, हम तेरे हैं।
*'' अधा म इन्द्र श्रृणवो हवेमा ॥ऋ०७/२९/३)
: हे प्रभु !अब तो मेरी इन प्रार्थनाओं को सुन लो।
*'' तमेव विद्वान् न बिभाय मृत्योः ॥'' -- ( अ० १०/८/४४)
: आत्मा को जानने पर मनुष्य मृत्यु से नहीं डरता।
*'' यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति ॥'' -- ( ऋ०१/१६४/३९)
: जो उस ब्रह्म को नहीं जानता वह वेद से क्या करेगा।
*'' तवेद्धि सख्यम स्तृतम्॥'' -- ( ऋ० १/१५/५)
: प्रभो! तेरी मैत्री ही सच्ची है।
*'' स्वस्ति गोभ्यो जगते पुरूषेभ्यः ॥'' -- ( अ० १/३१/४)
: सब पशु पक्षी और प्राणीमात्र का भला हो।
*'' स्वस्ति मात्र उत पित्रे नो अस्तु
: हमारे माता और पिता सुखी रहें।
*'' रमन्तां पुण्या लक्ष्मीर्याः पापीस्ताऽनीनशम् ।'' (अ०७/११५/४)
: पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढावे और पाप की कमाई को मैं नष्ट कर देता हूं।
*'' मा जीवेभ्यः प्रमदः
: प्राणियों की और से बेपरवाह मत हो।
*'' मा प्रगाम पथो वयम् ॥'' -- ( अ० १३/१/५९)
: सन्मार्ग से हम विचलित न हों।
*'' मान्तः स्थुर्नों अरातयः ॥'' -- ( ऋ० १०/५७/१)
: हमारे अन्दर कंजूसी न हो।
*'' उतो रयिः पृणतो नोपदस्यति ॥'' -- ( ऋ० १०/११७/१)
: दानी का दान घटता नहीं।
*'' अक्षैर्मा दीव्यः ॥'' -- ( ऋ० १०/३४/१३)
: जुआ मत खेलो।
*'' जाया तप्यते कितवस्य हीना ॥'' -- ( ऋ० १०/३४/१०)
: जुएबाज की स्त्री दीन हीन होकर दुःख पाती रहती है।
*'' प्रियं सर्वस्य पश्यत उत शूद्र उतार्ये ॥'' -- ( अ० १९/६२/१)
: सबका कल्याण सोचो चाहे शूद्र हो चाहे आर्य।
*'' न स सखा यो न ददाति सख्ये ॥'' -- ( ऋ० १०/११७/४)
: वह मित्र ही क्या जो अपने मित्र को सहायता नहीं देता।
*'' वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥ यजु० १९/४४)
: हम सर्व सम्पतियों के स्वामी हों।
*'' अनागोहत्या वै भीमा ॥'' -- ( अ० १०/१/२९)
: निरपराध की हिंसा करना भयंकर है।
*'' क्रत्वा चेतिष्ठो विशामुषर्भुत्
: प्रातः जागने वाला प्रबुद्ध होता है, उसे सब स्नेह करते हैं।
*'' (सोम) न रिष्यत्त्वावतः सखा
: हे सोम (परमात्मा) ! तेरा सखा कभी दुःखी नहीं होता।
*'' त्वं जोतिषा वि तमो ववर्थ
: अपने ज्ञान के प्रकाश से हमारे अज्ञान को नष्ट करो।
*'' पितेव नः श्रृणुहि हूयमानः
: पुकारे जाने पर पिता की भाँति हमारी टेर सुनो।
*'' अघृणे न ते सख्यमपह्युवे
: हे प्रभो ! तेरी मित्रता से इन्कार नहीं करता।
*'' दिप्सन्त इद्रिपवो नाह देभुः
: दबाने वाले शत्रु उपासक को नहीं दबा सकते।
*'' न विन्धे अस्य सुष्टुतिम्
: मैं प्रभु की स्तुति का पार नहीं पाता।
*'' यत्र सोमः सदमित् तत्र भद्रम्
: जहाँ परमेश्वर की ज्योति है, वहाँ कल्याण ही है।
*'' मा श्रुतेन वि राधिषि
: हम सुने हुए वेदोपदेश के विरुद्ध आचरण न करें ।
*'' अपृणन्तमभि सं यन्तु शोकाः
: लोकोपकारहीन कञ्जूस को शोक घेर लेता है।
*'' मा प्र गाम पथो वयम्
: हम वैदिक मार्ग से पृथक न हों ।
*'' त्वमस्माकं तव स्मसि
: प्रभो ! तू हमारा है, हम तेरे हैं।
*'' जाया तप्यते कितवस्य हीना
: जूएबाज की पत्नी दीन-हीन होकर दुःख पाती है।
*'' न स सखा यो न ददाति सख्ये
: मित्र की सहायता न करने वाला मित्र नहीं होता।
*'' मात्र तिष्ठः पराङ् मनाः
: इस संसार में उदासीन मन से मत रहो।
*'' अघमस्त्वघकृते
: पापी को दुःख ही मिलता है।
*'' न स्तेयमद्मि
: मैं चोरी का माल न खाऊँ।
*'' असन्तापं मे ह्रदयम्
: मेरा हृदय सन्ताप से रहित हो।
*'' उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः
: हे विद्वानो ! गिरे हुओं को ऊपर उठाओ।
*'' अहं भूमिमददामार्याय
: मैं यह भूमि आर्यों को देता हूँ।
*'' मा भेर्मा संविक्थाऽऊर्जं धत्स्व
: मत डर, मत घबरा, धैर्य धारण कर।
*'' तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः-(१०/८/१)
: उस ज्येष्ठ ब्रह्म को
*'' नेत् त्वा
: हे प्रभु! मैं तुझे कदापि न छोडूँ।
*'' तव
: हे प्रभु ! हम तेरे हैं।
*'' न घा त्वद्रिगपवेति मे
: मेरा मन तो तुझमें लगा है,तुझसे हटता ही नहीं।
*'' त्वे इत् कामं पुरुहूतं शिश्रय)
: हे प्रभु ! मैंने अपनी चाह को तुझ में ही केन्द्रित कर दिया है।
*'' त्वामीमहे
: हे भगवन् ! हम तेरे आगे हाथ पसारते हैं।
*'' स्यामेदिन्द्रस्य
: हम प्रभु की ही शरण पकड़ें।
*'' हवामहे त्वोपगन्तवा
: हे प्रभु ! हम तेरे समीप पहुँचने के लिए पुकार रहे हैं।
*'' एक एव
: याद रखो,एक ही परमेश्वर है जो नमस्करणीय है।
*'' एको राजा जगतो
: जगत् का राजा एक ही है।
*'' एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति ।)
: एक ही परमेश्वर को विप्रजन अनेक नामों से पुकारते हैं।
*'' द्यावाभूमी जनयन् देव
: आकाश-भूमि को पैदा करने वाला देव एक ही है।
*'' सखा नो असि परमं च
: तू हमारा सखा और परम बन्धु है।
*'' सद्यः सर्वान्
: तुरन्त तू सबको देख लेता है।
*'' महस्ते सतो महिमा
: तुझ महान की महिमा का सर्वत्र गान हो रहा है।
*'' न यस्य हन्यते सखा न जीयते
: प्रभु के मित्र को कोई मार या जीत नहीं सकता।
*'' द्वौ सन्निषद्य यन्मन्त्रयेते राजा तद् वेद
: कोई दो बैठकर के जो मन्त्रणा करते हैं प्रभु तीसरा होकर उसे जान लेता है।
*'' भीमा इन्द्रस्य
: प्रभु के दण्ड बड़े भयङ्कर हैं।
*'' यत्र सोमः सद्मित् तत्र
: जहाँ प्रभु है,वहाँ कल्याण ही कल्याण है।
*'' विष्णोः कर्माणि
: व्यापक प्रभु के आश्चर्य-जनक कर्मों को देखो।
*'' न वा उ सोमो वृजिनं
: प्रभु पापी को कभी नहीं बढ़ाते।
*'' सनातनमेनमाहुरुताद्य स्यात्
: प्रभु सबसे पुरातन है,पर आज भी वह नया है।
*'' ततः परं नाति पश्यामि
: प्रभु से बढ़कर मुझे कुछ नहीं दीखता।
*'' इन्द्रस्य कर्म सुकृता
: प्रभु के सब कर्म शोभा के होते हैं।
*'' हत्वी दस्यून् प्रार्यं
: प्रभु दुष्टों का विनाश कर आर्यजनों की रक्षा करता है।
*'' प्रत्यङ् नः सुमना
: हे प्रभु ! हम पर कृपालु मन वाला हो।
*'' यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो
: हे प्रभु ! जिस शुभ इच्छा से हम तेरा आह्वान करें, वह हमारी पूर्ण हो।
*'' मा नो हिंसीः पितरं मातरं च'' -- (अथर्व० ११/२/२९)
: हे प्रभु ! हमारे माता-पिता को कष्ट मत दो।
*'' वि द्विषो वि मृधो
: हमारी द्वेषवृत्तियों और हिंसकवृत्तियों को नष्ट कर।
*'' अग्ने सख्ये मा रिषामा वयं
: हे प्रभु ! तेरी मैत्री पाकर हम विनाश से बच जायें।
*'' मा त्वायतो जरितुः
: हे प्रभु ! तेरी चाह वाले मुझ भक्त के मनोरथ को अपूर्ण मत रख।
*'' न स्तोतारं निदे
: मुझ स्तोता को निन्दा का पात्र मत कर।
*'' बहुप्रजा निऋर्तिमा विवेश ॥'' -- (ऋ०१/१६४/32)
: बहुत सन्तान वाले बहुत कष्ट पाते हैं।
*'' मा ते रिषन्नुपसत्तारोऽग्ने ॥'' -- (अथर्व० २/६/२)
: प्रभो ! आपके उपासक दुःखित न हों।
*'' कस्तमिन्द्र त्वावसुमा मतर्यों दधर्षति ॥ (ऋ०७/३२/१४)
: ईश्वर भक्त का तिरस्कार कोई नहीं कर सकता।
*'' मा त्वा वोचन्नत्रराधसं जनासः ॥'' -- (अथर्व० ५/११/७)
: लोग मुझे कंजूस न कहें।
*'' इमं नः श्रृणवद्धवम् ॥'' -- (ऋ०१०/२६/९)
: वह प्रभु हमारी प्रार्थना को सुने।
*'' स्तोतुर्मघवन्काममा पृण ॥'' -- (ऋ० १/५७/५)
: भगवान् ! भक्त की कामनाओं को पूर्ण करो।
*'' ओ३म् खं ब्रह्म ॥'' -- (यजु० ४०/१७)
: ओ३म् परमात्मा सर्वव्यापक है।
*'' विश्वेषामिज्जनिता ब्रह्मणामसि ॥'' -- (ऋ०२/२३/२)
: सम्पूर्ण विद्याओं का आदि मूल तू ही है।
*'' देवो देवानामसि ॥'' -- (ऋ० १/९४/१३)
: तू देवों का देव है।
*'' यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति ॥'' -- (अथर्व० ९/१०/१८)
: जो उस प्रभु को नहीं जानता वह वेद से ही क्या फल प्राप्त करेगा।
*'' स नः पर्षदति द्विषः ॥'' -- (ऋ० १०/१८७/५)
: वह परमात्मा हमें सब कष्टों से पार करे।
*'' आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥'' -- (यजु० १९/३८)
: दुष्ट पुरुषों को दूर भगाओ।
*'' मा नः प्रजां रीरिषः ॥'' -- (ऋ० १०/१८/१)
: हे ईश्वर ! तू हमारी सन्तान का नाश न कर।
*'' सत्या मनसो मेऽस्तु ॥'' -- ( ऋ० १०/१२८/४)
: मेरे मन की भावनाएं सच्ची हों।
*'' लोकं कृणोतु साधुया ॥'' -- (यजु० २३/४३)
: जनता को सच्चरित्र बनावें।
*'' तनूपाऽअग्न्रिः पातु दुरितादलद्यात् ॥'' -- ( यजु० ४/१५)
: ईश्वर हमें निन्दनीय दुराचरण से बचावे।
*'' दस्यूनव धूनुष्व ॥'' -- (अथर्व० १९/४६/२)
: दस्युओं को धुन डाल।
*'' आ वीरोऽत्र जायताम् ॥'' -- (अथर्व० ३/२३/२)
: वीर सन्तान उत्पन्न कर।
*'' भियं दधाना ह्रदयेषु शत्रुनः ॥'' -- (ऋ० १०/८४/७)
: शत्रु के ह्रदय में भय उत्पन्न कर दो।
*'' सखा सखिभ्यो वरीयः कृणोतु ॥'' -- (अथर्व० ७/५१/१)
: मित्र को मित्र की भलाई करनी चाहिये।
*'' दूर ऊनेन हीयते ॥'' -- (अथर्व० १०/८/१५)
: बुरी संगत से मनुष्य अवनत होता है।
*'' गोस्तु मात्रा न विद्यते ॥'' -- (यजु० २३/४८)
: गौ का मूल्य नहीं है।
*'' निन्दितारो निन्द्यासो भवन्तु ॥'' -- (ऋ० ५/२/६)
: निन्दक सबसे निन्दित होते हैं।
*'' विश्वम्भर विश्वेन मा भरसा पाहि ॥'' -- (अथर्व० २/१६/५)
: प्रभो ! अपनी शक्ति से मेरी रक्षा करो।
*'' न त्वदन्यो मघवन्नस्ति मर्डिता ॥'' -- (ऋ० १/८४/१९)
: हे ईश्वर !तुम्हारे सिवाय सुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है।
*'' आर्य ज्योतिरग्राः ॥'' -- (ऋ० ७/३३/७)
: आर्य प्रकाश (ज्ञान) को प्राप्त करने वाला होता है।
*'' करो यत्र वरिवो बाधिताय ॥'' -- ( ऋ० ६/१८/१४)
: पीड़ितों की सहायता करने वाले हाथ ही उत्तम हैं।
*'' प्राता रत्नं प्रातरिश्वा दधाति ॥'' -- (ऋ० १/१२५/१)
: प्रातः जागने वाला प्रभात बेला में ऐश्वर्य पाता है।
*'' मिथो विघ्नाना उपयन्तु मृत्युम् ॥'' -- (अथर्व० ६/३२/३)
: परस्पर लड़ने वाले मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
*'' अधः पश्यस्व मोपरि ॥'' -- (ऋ० ८/३३/१९)
: हे नारि ! नीचे देख ऊपर मत देख ।
*'' मा दुरेवा उत्तरं सुम्नमुन्नशन् ॥'' -- (ऋ० २/२३/८)
: दुराचारी उत्तम सुख को मत प्राप्त करें।
*'' प्रमृणीहि शत्रून् ॥'' -- (यजु०१३/१३)
: शत्रुओं को कुचल डालो।
*'' परि माग्ने दुश्चरिताद् बाधस्व ॥'' -- (यजु० ४/२८)
: हे ईश्वर ! आप मुझे दुष्ट आचरण से हटायें।
*'' शन्नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे ॥'' -- (यजु० ३६/८)
: प्रभु हमारे दोपाये मनुष्यों और चौपाये पशुओं के लिए कल्याणकारी और सुखदायी हो।
*'' ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्रं विरक्षति ॥'' -- (अथर्व० ११/५/१७)
: ब्रह्मचर्य रुपी तप के द्वारा राजा राष्ट्र का संरक्षण करता है।
*'' मा पुरा जरसो मृथाः ॥'' -- (अथर्व० ५/३०/१७)
: हे मनुष्य ! तू बुढ़ापे से पहले मत मर।
*'' सहोऽसि सहो मयि धेहि ॥
हे प्रभो ! आप सहनशील हैं मुझमें सहनशीलता धारण करिये।
*'' नेनद्दवा आप्नुवन पूर्वमषत् ॥''
: परमात्मा भौतिक इन्द्रियों और अविद्वानों का विषय नहीं है।
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