"ब्रह्मचर्य": अवतरणों में अंतर

'* मन, वाणी तथा शरीर से सदा सर्वत्र तथा सभी परिस्थितियों में सभी प्रकार के मैथुनों से अलग रहना ही ब्रह्मचर्य है। -- याज्ञवल्क्य * जो इस ब्रह्मलोक को ब्रह्मचर्य के द्वारा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
 
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* ''त्रयः उपस्तम्भाः । आहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यं च सति।''' --
: (शरीररुपी भवन को धारण करनेवाले) तीन उपस्तम्भ हैं; आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य ।
 
* ''ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत।'' -- अथर्ववेद, ब्रह्मचर्य सूक्त
: ब्रह्मचर्य के तप द्वारा देवों ने मृत्यु को मार भगाते हैं।
 
* मन, वाणी तथा शरीर से सदा सर्वत्र तथा सभी परिस्थितियों में सभी प्रकार के मैथुनों से अलग रहना ही ब्रह्मचर्य है। -- याज्ञवल्क्य