"मित्र": अवतरणों में अंतर

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* ''यानि कानि च मित्राणि कृतानि शतानि च ।
: ''पश्य मूषकमित्रेण कपोताः मुक्तबन्धनाः ॥'' -- (पंचतन्त्र)
: अर्थ : जो कोई भी हों , सैकड़ो मित्र बनाने चाहिये । देखो, (जैसे कि) मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे (वैसे ही अधिकाधिक मित्र रहने पर विपत्ति में कोई न कोई मित्र काम आ सकता है)!
 
* ''न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपुः ।
: ''व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिपस्तथा ॥'' -- (चाणक्य)
: अर्थ : न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
 
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