"वाणी": अवतरणों में अंतर

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: तुलसी मीठे बचन तें , सुख उपजत चहुँ ओर ।
* ''केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः
: ''न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः।
: ''वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
: ''क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥'' -- भर्ठरि, नीतिशतक
: इस धरती पर पुरुषों (मनुष्यों) की सुन्दरता न तो बाजूबन्द पहनने से और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल कांति वाले मोतियों की माला ही पहनने से बढ़ती है। न स्नान से, न सुगंधित पदार्थों के लेपन से, न फूलों की सज्जा से, न ही बालों को बनाने से ही (मनुष्य की सुन्दरता में वृद्धि होती है)। एकमात्र संस्कारित वाणी अपनाने से ही मनुष्य के सौन्दर्य को बढ़ाती है। सभी प्रकार के आभूषण समयान्तराल के बाद नष्ट ही हो जाते हैं, किन्तु मधुर/सारगर्भित/कल्याणकारी वाणी ही सदैव मनुष्य का आभूषण होती है।
 
:* प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
: तस्मात् तदेव वक्तव्यं , वचने का दरिद्रता ॥
: ( प्रिय वाणी बोलने से सभी जन्तु खुश हो जाते है । इसलिये मीठी वाणी ही बोलनी चाहिये , वाणी में क्या दरिद्रता ? )
 
:* तुलसी मीठे बचन तें , सुख उपजत चहुँ ओर ।
: वशीकरण इक मंत्र है , परिहहुँ बचन कठोर ॥ -- तुलसीदास
 
:* ऐसी बानी बोलिये , मन का आपा खोय ।
: औरन को शीतल लगे , आपहुँ शीतल होय ॥ -- कबीरदास
 
:* मधुर वचन है औषधि , कटुक वचन है तीर ।
: श्रवण मार्ग ह्वै संचरै , शाले सकल शरीर ॥ -- कबीरदास
 
:* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं। -- तिरूवल्लुवर
: प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
: तस्मात् तदेव वक्तव्यं , वचने का दरिद्रता ॥
: ( प्रिय वाणी बोलने से सभी जन्तु खुश हो जाते है । इसलिये मीठी वाणी ही बोलनी चाहिये , वाणी में क्या दरिद्रता ? )
 
: नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं। -- तिरूवल्लुवर
 
:* नरम शब्दों से सख्त दिलों को जीता जा सकता है। -- सुकरात
 
:* अप्रिय शब्द पशुओं को भी नहीं सुहाते हैं। -- बुद्ध
 
:* खीरा सिर ते काटिये , मलियत लौन लगाय ।
: रहिमन करुवे मुखन को , चहिये यही सजाय ॥ -- रहीम
 
:* शब्द सम्हारै बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव।
: एक शब्द औषधि करे, एक करे घाव।
 
:* कागा काको धन हरै, कोयल काको देत ।
: मीठा शब्द सुनाए के, जग अपनो कर लेत।
 
:* सचिव बैद गुरु तीनि जौं, प्रिय बोलहिं भय आस।
: राज धर्म तन तीनि कर, होई बेगहिं नास॥ -- तुलसीदास
 
:* ऐक शब्द सों प्यार है, ऐक शब्द कू प्यार।
: ऐक शब्द सब दुसमना, ऐक शब्द सब यार॥
 
:* दौनों रहिमन एक से, जौ लौं बोलत नाहिं।
: जान परत है काक पिक, ऋतु बसंत के माहिं॥
 
 
* कड़वी बात भी हंसहँस कर कही जाए तो मीठी हो जाती हैं।है। -- प्रेमचंद
 
* कठोर वचन बुरा है क्योकि तन-मन को जला देता है और मृदुल वचन अमृत वर्षा के समान हैं। -- कबीर
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* कितना भी दुःखद विषय हो, उसकी चर्चा कठोर भाषा में नहीं करनी चाहिए। -- महात्मा गांधी
 
* कटु वचन कहने से अच्छा है कि ख़ामोशमौन रहा जाए। -- अज्ञात
 
* मनुष्यों के पास धन-दौलत के अंबार हो सकते है लेकिन बुद्धिमान मनुष्य की वाणी तो अनमोल होती हैं। -- बाइबिल
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