"उत्साह": अवतरणों में अंतर

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* ''यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य विहीनता ।
: ''नयविक्रम संयोगस्तत्र श्रीरचला ध्रुवम् ॥ -- पञ्चतन्त्र
: जहाँ उत्साह है, आरम्भ (पहल) है, और आलस्य नहीं है, नय (नीति) और पराक्रम का समुचित समन्वय है, वहाँ से लक्ष्मी कहीं और नहीं जाती, यह निश्चित है।