"आयुर्वेद": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १:
* आयुरस्मिन् विद्यते अनेन वा
: अर्थ- जिसमें आयु है या जिससे आयु का ज्ञान प्राप्त हो, उसे आयुर्वेद कहते हैं।
पंक्ति १२:
: '''अर्थ''' - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल (जड़) उत्तम आरोग्य ही है।
* शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम् (
: अर्थात् धर्म की सिद्धि में सर्वप्रथम, सर्वप्रमुख साधन (स्वस्थ) शरीर ही है। अर्थात् कुछ भी करना हो तो स्वस्थ शरीर पहली आवश्यकता है।
* धी धृति स्मृति विभ्रष्टः कर्मयत् कुरुत्ऽशुभम्।
: प्रज्ञापराधं तं विद्यातं सर्वदोष प्रकोपणम्॥ (चरक संहिता
: अर्थात् धी (बुद्धि), धृति (धैर्य) और स्मृति (स्मरण शक्ति) के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को 'प्रज्ञापराध' कहा जाता है। जो प्रज्ञापराध करेगा उसके शरीर और स्वास्थ्य की हानि होगी और वह रोगग्रस्त हो ही जाएगा।
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