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==कर्मभूमि उपन्यास==
* सुखदा -- '''“कायरों को इसके सिवा और सूझ ही क्या सकता है ? धन कमाना आसान नहीं है। व्यवसायियों को जितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वह अगर संन्यासियों को झेलनी पड़े, तो सारा संन्यास भूल जाएं। किसी भले आदमी के द्वार पर जाकर पड़े रहने के लिए बल, बुद्धि, विद्या, साहस किसी की भी जरूरत नहीं। धनोपार्जन के लिए खून जलाना पड़ता है। सहज काम नहीं है। धन कहीं पड़ा नहीं है कि जो चाहे बटोर लाए।”'''
==बाह्य सूत्र==
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