७४६
सम्पादन
अनुनाद सिंह (चर्चा | योगदान) ('* अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनुनाद सिंह (चर्चा | योगदान) No edit summary |
||
'''महाभारत''' [[संस्कृत]] का एक महाकाव्य है जिसकी रचना चौथी शताब्दी ईसापूर्व से लेकर दूसरी शताब्दी ईसवी तक के विस्तृत कालखण्ड में हुई मानी जाती है। महाभारत की सबसे बड़ी पाण्डुलिपि में लगभग २० लाख शब्द हैं। कभी-कभी इसे विश्व का सबसे बड़ा काव्य माना जाता है।
* अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम- ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। ▼
-----
▲*
* अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धि बल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते।
* अपनी दृष्टि सरल रखो, कुटिल नहीं। सत्य बोलो, असत्य नहीं। दूरदर्शी बनो, अल्पदर्शी नहीं। परम तत्व को देखने का प्रयास करो, क्षुद्र वस्तुओं को नहीं।
* अपनी
* अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं
* अपने पूर्वजों का सम्मान करना चाहिए। उनके बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए। उनके दिए उपदेशों का आचरण करना चाहिए।
* मोह मे फंसकर अधर्म का प्रतिकार न करने के कारण ही महाभारत जैसे युध्द से महान जन-धन की हानि हुई।
* मौत आती है, और एक आदमी को अपना शिकार बनाती है, एक ऐसा आदमी जिसकी शक्तियां अभी तक अनपेक्षित हैं; फूलों के इरादे को इकट्ठा करने की तरह, जिनके विचार दूसरे तरीके से बदल जाते हैं। अच्छी प्रैक्टिस करने के लिए दांव लगाना शुरू करें, ऐसा न हो कि भाग्य आपके लिए योजनाओं और परवाह के दौर को अनदेखा कर दे;
* यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है।
* स्वार्थ बड़ा बलवान है। इसी कारण कभी-कभी मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु मित्र।
==महाभारत के बारे में==
* ''यदिहास्ति तद् अन्यत्र यन्नेहास्ति न तद्क्वचिद्।'' ( अर्थ : जो यहाँ है वह अन्यत्र है (किन्तु) जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है।)
* महाभारत में, राज्याभिषेक के समय उपदेश में यह भी कहा गया है कि राजा को माली के समान होना चाहिये न कि लकड़ी जलाने वाले की तरह। माला सामाजिक समरसता का संकेत करता है, यह धार्मिक विविधता का रूपक है जिसमें विभिन्न रंगों के फूल मिलकर अत्यन्त सुखदायक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उसके विपरीत लकड़ी जलाने वाला पाशविक शक्ति का प्रतीक है जो विविधता को (जलाकर) एकरूपता में बदलता है, जिसमें जीवित पदार्थ को निर्जीव एकसमान राख में बदल दिया जाता है। -- राजीव मल्होत्रा, इन्द्राज नेट में
|
सम्पादन