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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) '* नैव राज्यं न राजाऽऽसीन्न च दण्डो न दाण्डिकः। : धर्मेणैव प्रजाः सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम्॥ -- महाभारत (शान्तिपर्व) : अर्थ : न (उस समय) राज्य था न राजा था। न दण्ड था न दण्ड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया |
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०७:४०, ८ जनवरी २०२२ का अवतरण
- नैव राज्यं न राजाऽऽसीन्न च दण्डो न दाण्डिकः।
- धर्मेणैव प्रजाः सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम्॥ -- महाभारत (शान्तिपर्व)
- अर्थ : न (उस समय) राज्य था न राजा था। न दण्ड था न दण्ड देने वाला। धर्म से ही सारे लोग परस्पर रक्षा करते थे।
- राज्य तीन शक्तियों के अधीन है- मंत्र, प्रभव और उत्साह। -- (दशकुमारचरितम्)
- सुखस्य मूलं धर्मः। धर्मस्य मूलमर्थः। अर्थस्य मूलं राज्यम्। राज्यस्य मूलमिन्द्रियजयः। (चाणक्य नीतिसूत्र)
- अर्थ : सुख का मूल (जड़) धर्म है। धर्म का मूल अर्थ (धन-सम्पत्ति, रुपया-पैसा, सोना-चाँदी आदि) है। अर्थ का मूल राज्य है। राज्य का मूल इन्द्रियों पर विजय है।