"पुस्तक": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति ५:
: ''ग्रन्थ का विषय, उसका प्रयोजन, उसका अधिकारी और प्रतिपाद्य–प्रतिपादक का सम्बन्ध ( इन चारों को ‘अनुबन्धचतुष्टय’ नाम से कहा जाता है) ये अनुबन्ध जिस ग्रन्थ में न हों उसका मङ्गल नहीं होता।
: '' प्रवृत्तिर्वा निवृत्तिर्वा नित्येन कृतकेन वा ।
: '' पुंसां येनोपदिश्येत तच्छास्त्रमभिधीयते ॥ (श्लोकवार्तिकम् शब्दपरिच्छेदः ४)
: मनुष्यों को जिससे सांसारिक विषयों में अनुरक्ति अथवा विरक्ति अथवा मानवरचित विषयों का उचित ज्ञान मिलता है, उसे शास्त्र कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि जिस पुस्तक से यह पता चले कि किस आचरण को अपनाया जाय और किस आचरण को छोड़ दिया जाय, उसे शास्त्र कहते हैं।
* अच्छी पुस्तकें जीवन्त देव प्रतिमाएँ हैं। उनकी आराधना से तत्काल प्रकाश और उल्लास मिलता है। – पंडित श्रीराम शर्मा 'आचार्य'
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