"गुण": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) '* सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते (सभी गुण स्वर्ण पर ही आश्रय पाते हैं।) -- भर्तृहरि * वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्खाः शतान्यपि (एक ही गुणी पुत्र श्रेष्ठ है, सैकड़ों मूर्ख न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति ८५:
* सज्जनों के मन घोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। -- बाणभट्ट
* सद्गुण,
* सद्गुण ही ज्ञान हैं। -- सुकरात
* सभी लोगों के स्वभाव की ही परीक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरि है)। -- हितोपदेश
|