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विधा सदस्य भूषणमृ
==गणितशास्त्रप्रशंसा==
''गणितसारसंग्रहः'' के 'संज्ञाधिकारः' में मंगलाचरण के पश्चात महावीराचार्य ने बड़े ही मार्मिक ढंग से [[गणित]] की प्रशंशा की है।
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विद्यातुराणां न रुचिः न पक्वम्
 
विद्वान् सर्वत्र पूज्यते
विद्या सर्वस्य भूषणम्
 
विनाशकाले विपरीत बुद्धिः