"भारतेंदु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर

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; मातृभाषा
*: निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।<br>
: बिन निज भाषा ज्ञान कै, मिटे न हिय को सूल ॥
 
: विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
: सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ॥
 
* इस प्रान्त की प्राथमिक पाठशालाओं में हिंदी भाषा की लिपि का प्रयोग प्रायः पूर्णतया किया जाता है। परन्तु अदालतों और दफ्तरों में फारसी भाषा की लिपि का प्रयोग होता है; अतः उस प्राथमिक शिक्षा का जो एक ग्रामीण लड़का अपने गाँव में प्राप्त करता है, कोई मूल्य नहीं है, कोई फल नहीं है। उसमें कोई आकर्षण ही नहीं रह जाता. वर्षों तक एक ग्राम पाठशाला में पढ़ने के बाद जब एक जमींदार का लड़का अदालत में जाता है तो उसे पता चलता है कि उसका सब परिश्रम व्यर्थ गया, अपने पूर्वजों की भांति वह भी बिलकुल अज्ञानी है, तथा वह उस घसीट लिपि (उर्दू) को पढ़ने में बिलकुल असमर्थ है जो अदालत का अमला प्रयोग में लाता है। यदि एक निर्धन व्यक्ति के पुत्र को अपने (हिंदी) ज्ञान के भरोसे पर जीविका साधन प्राप्त करने की अभिलाषा है तो उसे शिक्षा विभाग का द्वार खटखटाना पड़ेगा, अन्य विभाग उसे अशिक्षित कहकर वापस कर देंगे। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन)
 
* मुझे यह जानकर बहुत खेद हुआ कि माननीय अहमद खां बहादुर, सी. एस. आई., ने आयोग के सामने अपनी गवाही में कहा है कि सुसभ्य वर्ग की भाषा उर्दू है और असभ्य ग्रामीणों की हिंदी है। यह कथन गलत तो है ही, हिन्दुओं के प्रति अन्यायपूर्ण भी है। इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ कायस्थों को छोड़कर, अन्य सब अर्थात् क्षेत्रीय महाजन, जमींदार, यहाँ तक कि आदरणीय ब्राह्मण भी, जो हिंदी बोलते हैं, असभ्य ग्रामीण हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन ; पृष्ठ 38)
 
* सभी सभी देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है. यही ऐसा देश है जहाँ अदालती भाषा न तो शासकों की मातृभाषा है और न प्रजा की। यदि आप दो सार्वजनिक नोटिस, एक उर्दू में, तथा एक हिंदी में, लिखकर भेज दें तो आपको आसानी से मालूम हो जाएगा कि प्रत्येक नोटिस को समझने वाले लोगों का अनुपात क्या है। जो सम्मान जिलाधीशों द्वारा जारी किये जाते हैं उनमें हिंदी का प्रयोग होने से रैयत और जमींदार को हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त हुई है। साहूकार और व्यापारी अपना हिसाब-किताब हिंदी में रखते हैं. स्त्रियाँ हिंदी लिपि का प्रयोग करती हैं. पटवारी के कागजात हिंदी में लिखे जाते हैं और ग्रामों के अधिकतर स्कूल हिंदी में शिक्षा देते हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन)
 
* वास्तव में हमारी बोली क्या है, इस प्रश्न का उत्तर देना कुछ कठिन है। भारत में यह कहावत प्रसिद्ध है – बल्कि यह प्रमाणित सत्य है कि प्रत्येक योजन (आठ मील) के बाद बोली बदल जाती है। अकेले उत्तर पश्चिमी प्रान्त में कई बोलियाँ हैं. इस प्रान्त की भाषा एक गहन चीज है, उसके बहुत से रूप हैं। और इसलिए उसे कई उप-शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है; परन्तु इसके मुख्य रूप चार हैं : 1. पूर्वी, जिस रूप में वह बनारस तथा उसके पड़ौस के जिलों में बोली जाती है; 2. कन्नौजी, जो कानपुर तथा उसके आसपास के जिलों में बोली जाती है; 3. ब्रजभाषा, जो आगरा तथा उसकी सीमा के क्षेत्रों में बोली जाती है; 4. कय्यान या खड़ी बोली जिस रूप में वह सहारनपुर, मेरठ तथा उसके इर्द-गिर्द के जिलों में बोली जाती है। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन)
 
* यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने, के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा। तब पढ़ने वालों को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारंट बता दें। सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है। यही (भारत) ऐसा देश है जहाँ अदालती भाषा न तो शासकों की मातृभाषा है और न प्रजा की। यदि आप दो सार्वजनिक नोटिस, एक उर्दू में, तथा एक हिंदी में, लिखकर भेज दें तो आपको आसानी से मालूम हो जाएगा कि प्रत्येक नोटिस को समझने वाले लोगों का अनुपात क्या है। जो सम्मन जिलाधीशों द्वारा जारी किये जाते हैं उनमें हिंदी का प्रयोग होने से रैयत और जमींदार को हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त हुई है। साहूकार और व्यापारी अपना हिसाब-किताब हिंदी में रखते हैं। स्त्रियाँ हिंदी लिपि का प्रयोग करती हैं। पटवारी के कागजात हिंदी में लिखे जाते हैं और ग्रामों के अधिकतर स्कूल हिंदी में शिक्षा देते हैं। (हन्टर कमीशन में भारतेन्दु के प्रतिवेदन)
 
; ब्रजभाषा
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* प्रचलित साधुभाषा में कुछ कविता भेजी है। देखिएगा कि इस में क्या कसर है। और किस उपाय के अवलम्बन करने से इस भाषा में काव्य सुंदर बन सकता है। इस विषय में सर्वसाधारण की अनुमति ज्ञात होने पर आगे से वैसा परिश्रम किया जाएगा। तीन भिन्न-भिन्न छंदों में यह अनुभव करने के लिए कि किस छंद में इस भाषा का काव्य अच्छा होगा, कविता लिखी है। मेरा चित्त इससे संतुष्ट न हुआ और न जाने क्यों ब्रज-भाषा से मुझे इसके लिखने में दूना परिश्रम हुआ। इस भाषा की क्रियाओं में दीर्घ भाग विशेष होने के कारण बहुत असुविधा होती है। मैंने कहीं-कहीं सौकर्य के हेतु दीर्घ मात्राओं को भी लघु करके पढ़ने की चाल रखी है। लोग विशेष इच्छा करेंगे और स्पष्ट अनुमति प्रकाश करेंगे तो मैं और भी लिखने का यत्न करूँगा। (1 सितंबर 1881 को ‘भारत मित्र’ के सम्पादक को पत्र )
 
; उर्दू
:''है है उर्दू हाय हाय । कहाँ सिधारी हाय हाय ।
 
:''मेरी प्यारी हाय हाय । मुंशी मुल्ला हाय हाय ।
:''बल्ला बिल्ला हाय हाय । रोये पीटें हाय हाय ।
:''टाँग घसीटैं हाय हाय । सब छिन सोचैं हाय हाय ।
:''डाढ़ी नोचैं हाय हाय । दुनिया उल्टी हाय हाय ।
:''रोजी बिल्टी हाय हाय । सब मुखतारी हाय हाय ।
:''किसने मारी हाय हाय । खबर नवीसी हाय हाय ।
:''दाँत पीसी हाय हाय । एडिटर पोसी हाय हाय ।
:''बात फरोशी हाय हाय । वह लस्सानी हाय हाय ।
:''चरब-जुबानी हाय हाय । शोख बयानि हाय हाय ।
:''फिर नहीं आनी हाय हाय ।
 
; भारत की दुर्दशा
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* भीतर भीतर सब रस चूसै, बाहर से तन मन धन मूसै।<br>जाहिर बातन में अति तेज, क्यों सखि साजन? नहिं अंग्रेज ॥ ('अंधेरनगरी' में)
 
 
; भारतवर्ष की उन्नति