"श्रीराम शर्मा": अवतरणों में अंतर

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==विविध विषयों पर==
* युग निर्माण योजना का प्रधान उद्देश्य है - विचार क्रान्ति । मूढ़ता और रूढ़ियों से ग्रस्त अनुपयोगी विचारों का ही आज सर्वत्र प्राधान्य है ।। आवश्यकता इस बात की है कि (१) सत्य (२) प्रेम (३) न्याय पर आधारित विवेक और तर्क से प्रभावित हमारी विचार पद्धति हो । प्रकारान्तर से यही है, महान् परिवर्तन प्रस्तुत कर सकने वाली विचार क्रान्ति की रूप-रेखा। लोक-मानस के परिष्कार नाम से भी इसी का उल्लेख होता है। अवांछनीय मान्यताओं, गतिविधियों की रोक-थाम के लिए यह अनिवार्य रूप से आवश्यक है।
 
* पिछले दिनों जब हमारे देश के नागरिकों की विचारणा का स्तर बहुत ऊँचा था, तब शिक्षा के माध्यम से और अन्य वातावरणों के माध्यम से, धर्म और अध्यात्म के माध्यम से यह प्रयत्न किया जाता था कि आदमी ऊँचे किस्म का सोचने वाला हो एवं उसके विचार, उसकी इच्छा, आकांक्षा और महत्त्वाकांक्षाएँ नीच श्रेणी के जानवरों जैसी न होकर महापुरुषों जैसी हों। जब ये प्रयास किए जाते थे तो अपना देश कितना ऊँचा था! यहाँ के नागरिक देवताओं की श्रेणी में गिने जाते थे और यह राष्ट्र दुनिया के लोगों की आँखों में स्वर्ग जैसा दिखाई पड़ता था। इस महानता और विशेषता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए धर्म और अध्यात्म का सारा ढाँचा खड़ा किया गया है।
 
* विचार शक्ति को एक जीवित जादू कहा जा सकता है। उसके स्पष्ट होने से निर्जीव मिट्टी नयनाभिराम खिलौने के रूप में और प्राणघातक विष जीवनदायी रसायन के रूप से बदल जाता है।
 
* यों संसार में शारीरिक, सामाजिक, राजनीतिक और सैनिक- बहुत सी शक्तियाँ विद्यमान हैं। किन्तु इन सब शक्तियों से भी बढ़कर एक शक्ति है, जिसे विचार- शक्ति कहते हैं। वह सर्वोपरि है। उसका एक मोटा सा कारण तो यह है कि विचार-शक्ति निराकार और सूक्ष्मातिसूक्ष्म होती है और अन्य शक्तियाँ स्थूलतर। स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म में अनेक गुना शक्ति अधिक होती है।
 
* विचारों का तेज ही आपको ओजस्वी बनाता है और जीवन संग्राम में एक कुशल योद्धा की भाँति विजय भी दिलाता है। इसके विपरीत आपके मुर्दा विचार आपको जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पराजित करके जीवित मृत्यु के अभिशाप के हवाले कर देंगे। जिसके विचार प्रबुद्ध हैं उसकी आत्मा प्रबुद्ध है और जिसकी आत्मा प्रबुद्ध है उससे परमात्मा दूर नहीं है।
 
* विचारों को जाग्रत कीजिये, उन्हें परिष्कृत कीजिये और जीवन के हर क्षेत्र में पुरस्कृत होकर देवताओं के तुल्य ही जीवन व्यतीत करिये। विचारों की पवित्रता से ही मनुष्य का जीवन उज्ज्वल एवं उन्नत बनता है इसके अतिरिक्त जीवन को सफल बनाने का कोई उपाय मनुष्य के पास नहीं है। सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति से बड़ी शक्ति और क्या होगी?
 
* हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए।