"सुभाषित सहस्र": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १:
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">सुभाषित / सूक्ति / उद्धरण / सुविचार / अनमोल
वचन</FONTspan> </STRONG></P>
<P>पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के
टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।<BR>— संस्कृत सुभाषित</P>
पंक्ति १७:
<P>सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती।<BR>— राबर्ट हेमिल्टन</P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">गणित</FONTspan></STRONG></P>
<P>यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा ।<BR>तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं
मूर्ध्नि वर्तते ॥<BR>— वेदांग ज्योतिष<BR>( जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि
पंक्ति ४१:
।</P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">विज्ञान</FONTspan></STRONG></P>
<P>विज्ञान हमे ज्ञानवान बनाता है लेकिन दर्शन (फिलासफी) हमे बुद्धिमान बनाता है
।<BR>— विल्ल डुरान्ट</P>
पंक्ति ५२:
>— रिचर्ड फ़ेनिमैन</P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">तकनीकी / अभियान्त्रिकी / इन्जीनीयरिंग /
टेक्नालोजी</FONTspan></STRONG></P>
<P>पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता
।<BR>-आर्थर सी. क्लार्क</P>
पंक्ति ७५:
यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।</P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">कम्प्यूटर / इन्टरनेट</FONTspan></STRONG></P>
<P>इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते
हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता
पंक्ति ८५:
आपको पोषण तो मिला ही नहीं.<BR>— क्लिफ़ोर्ड स्टॉल</P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">कला</FONTspan></STRONG></P>
<P>कला विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है ।</P>
<P>कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है।<BR>-
पंक्ति १०४:
के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।<BR>— डा रामकुमार वर्मा </P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">भाषा / स्वभाषा</FONTspan></STRONG></P>
<P>निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल ।<BR>बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय
को शूल ॥<BR>— भारतेन्दु हरिश्चन्द्र</P>
पंक्ति १२७:
शिशुपाल वध</P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">साहित्य </FONTspan></STRONG></P>
<P>साहित्य समाज का दर्पण होता है ।</P>
<P>साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः ।<BR>( साहित्य संगीत और
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।<BR>— डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन</P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता /
सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ</FONTspan></STRONG></P>
<P>संघे शक्तिः ( एकता में शति है )</P>
<P>हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् ।<BR>समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च
पंक्ति १७८:
दुखी होता है ।<BR>–अज्ञात </P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">संस्था / संगठन / आर्गनाइजेशन</FONTspan></STRONG></P>
<P>दुनिया की सबसे बडी खोज ( इन्नोवेशन ) का नाम है - संस्था ।</P>
<P>आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का
पंक्ति १९२:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास /
प्रयत्न</FONTspan></STRONG></P>
<P>कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर ।<BR>पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर
॥<BR>— कबीर</P>
पंक्ति २३४:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">भय, अभय , निर्भय</FONTspan></STRONG></P>
<P>तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् ।<BR>आगतं हि भयं वीक्ष्य ,
प्रहर्तव्यं अशंकया ॥</P>
पंक्ति २५६:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">दोष / गलती / त्रुटि</FONTspan></STRONG></P>
<P>गलती करने में कोई गलती नहीं है ।</P>
<P>गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है ।<BR>— एल्बर्ट हब्बार्ड</P>
पंक्ति २७९:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">अनुभव / अभ्यास</FONTspan> </STRONG></P>
<P>बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है।</P>
<P>करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान।<BR>रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं
पंक्ति २९३:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">सफलता, असफलता</FONTspan></STRONG></P>
<P>असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया<BR>गया ।<BR>—
श्रीरामशर्मा आचार्य </P>
पंक्ति ३३६:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">सुख-दुःख , व्याधि , दया</FONTspan> </STRONG></P>
<P>संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है&nbsp;? बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख
के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं।
पंक्ति ३६५:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">प्रशंसा / प्रोत्साहन</FONTspan></STRONG></P>
<P>उष्ट्राणां विवाहेषु , गीतं गायन्ति गर्दभाः ।<BR>परस्परं प्रशंसन्ति , अहो रूपं
अहो ध्वनिः ।<BR>( ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं । एक-दूसरे की प्रशंसा कर
पंक्ति ३८६:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">मान , अपमान , सम्मान</FONTspan></STRONG></P>
<P>धूल भी पैरों से रौंदी जाने पर ऊपर उठती है, तब जो मनुष्य अपमान को सहकर भी
स्वस्थ रहे, उससे तो वह पैरों की धूल ही अच्छी।<BR>- माघकाव्य</P>
पंक्ति ४०१:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">अभिमान / घमण्ड / गर्व</FONTspan></STRONG></P>
<P>जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मै नाहि ।<BR>सब अँधियारा मिट गया दीपक
देख्या माँहि ॥<BR>— कबीर</P>
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">धन / अर्थ / अर्थ महिमा / अर्थ निन्दा / अर्थ
शास्त्र /सम्पत्ति / ऐश्वर्य</FONTspan></STRONG></P>
<P>दान , भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है,
उसके धन की तृतीय गति ( नाश ) होती है ।<BR>— भर्तृहरि</P>
पंक्ति ४४१:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">धनी / निर्धन / गरीब / गरीबी</FONTspan></STRONG></P>
<P>गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं ।<BR>— डेनियल</P>
<P>गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं , अमीरों के सम्बन्धी.<BR>-– एनॉन</P>
पंक्ति ४५४:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">व्यापार</FONTspan></STRONG></P>
<P>व्यापारे वसते लक्ष्मी । ( व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं )</P>
<P>महाजनो येन गतः स पन्थाः ।<BR>( महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही (उत्तम)
पंक्ति ४७४:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">विकास / प्रगति / उन्नति</FONTspan></STRONG></P>
<P>बीज आधारभूत कारण है , पेड उसका प्रगति परिणाम । विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग
भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं ।<BR>— श्रीराम शर्मा , आचार्य</P>
पंक्ति ४९२:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">राजनीति / शाशन / सरकार</FONTspan></STRONG></P>
<P>सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् ।<BR>न्यायमूलं सुराज्यं
स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥<BR>( शक्ति स्वतन्त्रता की जड है , मेहनत धन-दौलत की जड
पंक्ति ५१८:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">लोकतन्त्र / प्रजातन्त्र /
जनतन्त्र</FONTspan></STRONG></P>
<P>लोकतन्त्र , जनता की , जनता द्वारा , जनता के लिये सरकार होती है ।<BR>— अब्राहम लिंकन</P>
<P>लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है
पंक्ति ५४३:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">नियम / कानून / विधान / न्याय</FONTspan></STRONG></P>
<P>न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते ।<BR>( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो
सभी के लिए हितकर हो )<BR>— महाभारत</P>
पंक्ति ५६१:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">व्यवस्था</FONTspan></STRONG></P>
<P>व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है , शरीर का स्वास्थ्य है , शहर की शान्ति है ,
देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन ( बीम ) का घर से है , या हड्डी का शरीर से है
पंक्ति ५७४:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">विज्ञापन</FONTspan></STRONG></P>
<P>मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह
साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर
पंक्ति ५८०:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">समय</FONTspan></STRONG></P>
<P>आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः ।<BR>स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे
नमः ॥</P>
पंक्ति ६०९:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">अवसर / मौका / सुतार / सुयोग</FONTspan></STRONG></P>
<P>जो प्रमादी है , वह सुयोग गँवा देगा ।<BR>— श्रीराम शर्मा , आचार्य</P>
<P>बाजार में आपाधापी - मतलब , अवसर । </P>
पंक्ति ६३२:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">इतिहास</FONTspan></STRONG></P>
<P>उचित रूप से ( देंखे तो ) कुछ भी इतिहास नही है&nbsp;; (सब कुछ) मात्र आत्मकथा
है ।<BR>— इमर्सन</P>
पंक्ति ६५३:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता</FONTspan>
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<P>वीरभोग्या वसुन्धरा ।<BR>( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है ) </P>
पंक्ति ६८३:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">युद्ध / शान्ति</FONTspan></STRONG></P>
<P>सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है।<BR>— पं. जवाहरलाल नेहरू</P>
<P>सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव ।<BR>( हे कृष्ण , बिना युद्ध के सूई
पंक्ति ६९८:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">आत्मविश्वास / निर्भीकता</FONTspan></STRONG></P>
<P>आत्मविश्वास , वीरता का सार है ।<BR>— एमर्सन</P>
<P>आत्मविश्वास , सफलता का मुख्य रहस्य है ।<BR>— एमर्शन</P>
पंक्ति ७०९:
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<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">प्रश्न / शंका / जिज्ञासा /
आश्चर्य</FONTspan></STRONG></P>
<P>वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह
प्रश्न पूछता है ।</P>
पंक्ति ७३४:
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<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना
प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता /
सूचना-अर्थव्यवस्था</FONTspan></STRONG></P>
<P>संचार , गणना ( कम्प्यूटिंग ) और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं ।</P>
<P>ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । जितना अधिक आप इसका
पंक्ति ७५३:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">लिखना / नोट करना / सूची ( लिस्ट ) बनाना</FONTspan>
</STRONG></P>
<P>कागज स्थान की बचत करता है , समय की बचत करता है और श्रम की बचत करता है ।<BR>—
पंक्ति ७६७:
<P><STRONG></STRONG>&nbsp;</P>
<P><STRONG></STRONG>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">परिवर्तन / बदलाव</FONTspan></STRONG></P>
<P>क्षणे-क्षणे यद् नवतां उपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः । ( जो हर क्षण नवीन लगे वही
रमणीयता का रूप है )<BR>— शिशुपाल वध</P>
पंक्ति ८००:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">नेतृत्व / प्रबन्धन</FONTspan></STRONG></P>
<P>अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।<BR>अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः
तत्र दुर्लभ: ॥<BR>— शुक्राचार्य<BR>कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न
पंक्ति ८१९:
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<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">निर्णय</FONTspan></STRONG></P>
<P>हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है ।<BR>— फुलर</P>
<P>जब कभी भी किसी सफल व्यापार को देखेंगे तो आप पाएँगे कि किसी ने कभी साहसी
पंक्ति ८३३:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">विसंगति / विरोधाभास / उल्टी-गंगा /
पैराडाक्स</FONTspan></STRONG></P>
<P>सिर राखे सिर जात है , सिर काटे सिर होय ।<BR>जैसे बाती दीप की , कटि उजियारा
होय ॥<BR>— कबीरदास</P>
पंक्ति ८६४:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">कल्पना / चिन्तन / ध्यान /
मेडिटेशन</FONTspan></STRONG></P>
<P>अपनी याददास्त के सहारे जीने के बजाय अपनी कल्पना के सहरे जिओ ।<BR>— लेस
ब्राउन</P>
पंक्ति ८८४:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">चिन्तन / मनन</FONTspan></STRONG></P>
<P>जब सब एक समान सोचते हैं तो कोई भी नहीं सोच रहा होता है ।<BR>— जान वुडन</P>
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">स्वतंत्र चिन्तन / चिन्तन की
स्वतंत्रता</FONTspan></STRONG></P>
<P>कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर
की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों
पंक्ति ९१५:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">तर्कवाद / रेशनालिज्म / क्रिटिकल
चिन्तन</FONTspan></STRONG></P>
<P>पाहन पूजे हरि मिलै , तो मैं पुजूँ पहार ।<BR>ताती यहु चाकी भली , पीस खाय संसार
॥<BR>— कबीर</P>
पंक्ति ९२३:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">मौन</FONTspan></STRONG></P>
<P>मौन निद्रा के सदृश है । यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है ।<BR>—
बेकन</P>
पंक्ति ९४०:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">उपाय / सुविचार / सुविचारों की शक्ति / मंत्र /
उपाय-महिमा / समस्या-समाधान / आइडिया</FONTspan></STRONG></P>
<P>मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं , विचार हैं ।<BR>— श्रीराम शर्मा ,
आचार्य</P>
पंक्ति ९५७:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">कार्यारम्भ / कार्य / क्रिया /
कर्म</FONTspan></STRONG></P>
<P>ज्ञानं भार: क्रियां बिना ।</P>
<P>आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है ।<BR>— हितोपदेश</P>
पंक्ति १,००८:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">कार्यनीति</FONTspan></STRONG></P>
<P>एक साधै सब सधे, सब साधे सब जाये<BR>रहीमन, मुलही सिंचीबो, फुले फले अगाय
।<BR>–रहीम</P>
पंक्ति १,०२१:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">उद्यम / उद्योग / उद्यमशीलता / उत्साह / प्रयास /
प्रयत्न</FONTspan></STRONG></P>
<P>संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया ।<BR>— श्रीराम शर्मा ,
आचार्य</P>
पंक्ति १,०३३:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">परिश्रम</FONTspan></STRONG></P>
<P>मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था –
“भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ” – मुहम्मद
पंक्ति १,०४९:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">रचनाशीलता / श्रृजनशीलता / क्रियेटिविटी
/</FONTspan></STRONG></P>
<P>खोजना , प्रयोग करना , विकास करना , खतरा उठाना , नियम तोडना , गलती करना और मजे
करना , श्रृजन है ।</P>
पंक्ति १,०६६:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">विद्या / सीखना / शिक्षा / ज्ञान / बुद्धि /
प्रज्ञा / विवेक / प्रतिभा /</FONTspan></STRONG></P>
<P>विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम् ।<BR>( विद्या-धन सभी धनों मे श्रेष्ठ है ) </P>
<P>जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है ।<BR>(बुद्धिः यस्य बलं तस्य )<BR>—
पंक्ति १,१४६:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">पण्डित / मूर्ख / विज्ञ / प्रज्ञ / मतिमान
/</FONTspan></STRONG></P>
<P>झटिति पराशयवेदिनो हि विज्ञाः ।<BR>( जो झट से दूसरे का आशय जान ले वही
बुद्धिमान है । )</P>
पंक्ति १,१६७:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">सज्जन / साधु / महापुरुष / दुर्जन / खल / दुष्ट /
शठ</FONTspan></STRONG></P>
<P>साधु ऐसा चाहिये , जैसा सूप सुभाय ।<BR>सार सार को गहि रहै , थोथा देय उडाय
॥<BR>— कबीर</P>
पंक्ति १,२००:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">विवेक</FONTspan></STRONG></P>
<P>विवेक , बुद्धि की पूर्णता है । जीवन के सभी कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक
है ।<BR>— ब्रूचे</P>
पंक्ति १,२१२:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">भविष्य / भविष्य वाणी</FONTspan></STRONG></P>
<P>अनागतविधाता च प्रत्युत्पन्नमतिस्तथा ।<BR>द्वावेतो सुखमेधते , यदभविष्यो
विनश्यति ॥<BR>— पंचतन्त्र<BR>भविष्य का निर्माण करने वाला और प्रत्युत्पन्नमति (
पंक्ति १,२२७:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">आशा / निराशा / आशावाद / निराशावाद</FONTspan></STRONG>
</P>
<P>अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है।</P>
पंक्ति १,२५४:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">सम्भव / असम्भव / कठिन / सरल</FONTspan></STRONG></P>
<P>हर अच्छा काम पहले असंभव नजर आता है।</P>
<P>जो आपको कल कर देना चाहिए था, वही संसार का सबसे कठिन कार्य है |<BR>–
पंक्ति १,२६०:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">चिन्ता / तनाव / अवसाद</FONTspan> </STRONG></P>
<P>चिन्ता एक प्रकार की कायरता है और वह जीवन को विषमय बना देती है ।<BR>—
चैनिंग</P>
पंक्ति १,२७१:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">आत्म-निर्भरता</FONTspan></STRONG></P>
<P>जो आत्म-शक्ति का अनुसरण करके संघर्ष करता है , उसे महान विजय अवश्य मिलती
है।<BR>- भरत पारिजात ८।३४ </P>
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">भारत</FONTspan></STRONG></P>
<P>भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की
जननी है&nbsp;: भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है , अरबॊं के रास्ते हमारे
पंक्ति १,३०८:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">संस्कृत</FONTspan></STRONG></P>
<P>भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतम् संस्कृतिस्तथा ।<BR>( भारत की प्रतिष्ठा दो
चीजों में निहित है , संस्कृति और संस्कृत । )</P>
पंक्ति १,३२५:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">हिन्दी</FONTspan></STRONG></P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;"></FONTspan></STRONG>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;"></FONTspan></STRONG>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">देवनागरी</FONTspan></STRONG></P>
<P>हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी , उससे बहुत अधिक काम
देवनागरी लिपि दे सकती है ।<BR>-— आचार्य विनबा भावे </P>
पंक्ति १,३३९:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">महात्मा गाँधी</FONTspan></STRONG></P>
<P>आने वाली पीढियों को विश्वास करने में कठिनाई होगी कि उनके जैसा कोई हाड-मांस से
बना मनुष्य इस धरा पर चला था ।<BR>— अलबर्ट आइन्स्टीन</P>
पंक्ति १,३५५:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">रामचरितमानस</FONTspan></STRONG></P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;"></FONTspan></STRONG>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;"></FONTspan></STRONG>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">मानसिक परिपक्वता / भावनात्मक विवेक / इमोशनल
इन्टेलिजेन्स<BR></FONTspan></STRONG></P>
<P>क्रोधो वैवस्वतो राजा , तृष्णा वैतरणी नदी ।<BR>विद्या कामदुधा धेनुः , संतोषं
नन्दनं वनम ॥क्रोध यमराज है , तॄष्णा (इच्छा) वैतरणी नदी के समान है । विद्या
पंक्ति १,४१०:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">हँसी / खुशी / प्रसन्नता / हर्ष / विषाद / शोक /
सुख / दुख</FONTspan></STRONG></P>
<P>यदि बुद्धिमान हो , तो हँसो ।</P>
<P>विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान सतत प्रसन्नता है ।<BR>— मान्तेन</P>
पंक्ति १,४३४:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">धैर्य / धीरज</FONTspan></STRONG></P>
<P>धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है ।<BR>— डिजरायली</P>
<P>सुख में गर्व न करें , दुःख में धैर्य न छोड़ें ।<BR>- पं श्री राम शर्मा
पंक्ति १,४४२:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">हास्य-व्यंग्य सुभाषित</FONTspan></STRONG></P>
<P>हे दरिद्रते&nbsp;! तुमको नमस्कार है । तुम्हारी कृपा से मैं सिद्ध हो गया हूँ
।<BR>(क्योंकि) मैं तो सारे संसार को देखता हूँ लेकिन मुझे कोई नहीं देखता ॥</P>
पंक्ति १,५०६:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">धर्म</FONTspan></STRONG></P>
<P>धृति क्षमा दमोस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः ।<BR>धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो ,
दसकं धर्म लक्षणम ॥<BR>— मनु<BR>( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच (
पंक्ति १,५३४:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">सत्य / सच्चाई / इमानदारी /
असत्य</FONTspan></STRONG></P>
<P>असतो मा सदगमय ।।<BR>तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥<BR>मृत्योर्मामृतम् गमय ॥</P>
<P>(हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।<BR>अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो
पंक्ति १,५६०:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">अहिंसा , हिंसा , शांति</FONTspan> </STRONG></P>
<P>याद रखिए कि जब कभी आप युद्धरत हों, पादरी, पुजारियों, स्त्रियों, बच्चों और
निर्धन नागरिकों से आपकी कोई शत्रुता नहीं है।<BR>सच्ची शांति का अर्थ सिर्फ तनाव
पंक्ति १,५७४:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">पाप, पुण्य, पवित्रता</FONTspan></STRONG></P>
<P>जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है
और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है।<BR>- फुलर</P>
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">अतिथि</FONTspan></STRONG></P>
<P>मछली एवं अतिथि , तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं ।<BR>—
बेंजामिन फ्रैंकलिन</P>
पंक्ति १,५८७:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">संस्कृति</FONTspan></STRONG></P>
<P>आंशिक संस्कृति श्रृंगार की ओर दौडती है , अपरिमित संस्कृति सरलता की ओर ।<BR>—
बोबी</P>
पंक्ति १,५९४:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">गुण / सदगुण / अवगुण</FONTspan></STRONG></P>
<P>सौरज धीरज तेहि रथ चाका , सत्य शील डृढ ध्वजा पताका ।<BR>बल बिबेक दम परहित घोरे
, क्षमा कृपा समता रिजु जोरे ॥<BR>— तुलसीदास</P>
पंक्ति १,६३८:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">संयम / त्याग / सन्यास /
वैराग्य</FONTspan></STRONG></P>
<P>संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो
संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास ।<BR>— काका कालेलकर </P>
पंक्ति १,६५७:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">परोपकार / कृतज्ञता / आभार /
प्रत्युपकार</FONTspan></STRONG></P>
<P>परहित सरसि धरम नहि भाई ।<BR>— गो. तुलसीदास</P>
<P>अष्टादस पुराणेषु , व्यासस्य वचनं द्वयम् ।<BR>परोपकारः पुण्याय , पापाय
पंक्ति १,६७६:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">प्रेम / प्यार / घॄणा</FONTspan> </STRONG></P>
<P>उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष
के समान है।<BR>- तिरुवल्लुवर</P>
पंक्ति १,७०२:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">लज्जा / शर्म / हया</FONTspan></STRONG></P>
<P>यदि कोई लडकी लज्जा का त्याग कर देती है तो अपने सौन्दर्य का सबसे बडा आकर्षण खो
देती है ।<BR>— सेंट ग्रेगरी</P>
पंक्ति १,७०९:
<P>( धन-धान्य के लेन-देन में , विद्या के उपार्जन में , भोजन करने में और व्यवहार
मे लज्जा-सम्कोच न करने वाला सुखी रहता है । )</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;"></FONTspan></STRONG>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;"></FONTspan></STRONG>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">जीवन-दर्शन</FONTspan></STRONG></P>
<P>येषां न विद्या न तपो न दानं , ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।<BR>ते मर्त्यलोके
भुवि भारभूताः , मनुष्यरूपे मृगाश्चरन्ति ॥</P>
पंक्ति १,७८९:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">नीति / लोकनीति / नय / व्यवहार
कौशल</FONTspan></STRONG></P>
<P>कौन हमदर्द किसका है जहां में अकबर ।<BR>इक उभरता है यहाँ एक के मिट जाने से
॥<BR>— अकबर इलाहाबादी</P>
पंक्ति १,८२५:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">लक्ष्य / उद्देश्य / ध्येय</FONTspan></STRONG></P>
<P>यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें |</P>
<P>महान ध्येय ( लक्ष्य ) महान मस्तिष्क की जननी है ।<BR>— इमन्स</P>
पंक्ति १,८३५:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">इच्छा / कामना / मनोरथ / महत्वाकाँक्षा / चाह /
सपने देखना</FONTspan></STRONG></P>
<P>मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है |<BR>– वेदव्यास</P>
<P>इच्छा ही सब दुःखों का मूल है |<BR>-– बुद्ध</P>
पंक्ति १,८४६:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">सन्तान / पुत्र</FONTspan></STRONG></P>
<P>पूत सपूत त का धन संचय , पूत कपूत त का धन संचय ।</P>
<P>अजात्मृतमूर्खेभ्यो मृताजातौ सुतौ वरम् ।<BR>यतः तौ स्वल्प दुखाय, जावज्जीवं जडो
पंक्ति १,८६३:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">पालन-पोषण / पैरेन्टिग</FONTspan></STRONG></P>
<P>किसी बालक की क्षमताओं को नष्ट करना हो तो उसे रटने में लगा दो ।<BR>— बिनोवा
भावे</P>
पंक्ति १,८६९:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">स्वाधीनता / स्वतन्त्रता /
पराधीनता</FONTspan></STRONG></P>
<P>पराधीन सपनेहु सुख नाहीं ।<BR>— गोस्वामी तुलसीदास</P>
<P>आर्थिक स्वतन्त्रता से ही वास्तविक स्वतन्त्रता आती है ।</P>
पंक्ति १,८८०:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">आडम्बर, ढकोसला, ढोंग , पाखण्ड , वास्तविकता /
हाइपोक्रिसी</FONTspan></STRONG></P>
<P>माला तो कर में फिरै , जीभ फिरै मुख माँहि ।<BR>मनवा तो चहु दिश फिरै , ये तो
सुमिरन नाहिं ॥<BR>— कबीर</P>
पंक्ति १,९१३:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">पुस्तकें</FONTspan></STRONG></P>
<P>सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है
|<BR>— डबल्यू एच ऑदेन</P>
पंक्ति १,९२८:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">स्वाध्याय / अध्ययन</FONTspan></STRONG></P>
<P>स्वाध्यायात मा प्रमद ।<BR>( स्वाध्याय से प्रमाद ( आलस ) मत करो । )</P>
<P>अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता
पंक्ति १,९३८:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">गुरू</FONTspan></STRONG></P>
<P>आत्मनो गुरुः आत्मैव पुरुषस्य विशेषतः |<BR>यत प्रत्यक्षानुमानाभ्याम
श्रेयसवनुबिन्दते ||<BR>( आप ही स्वयं अपने गुरू हैं | क्योंकि प्रत्यक्ष और अनुमान
पंक्ति १,९४४:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">उपयोग, दुर्उपयोग</FONTspan></STRONG></P>
<P>जड़, तना, बहुतेरे पत्ते और फल सब कुछ मेरे पास है। फिर भी मात्र छाया से रहित
होने के कारण संसार मुझ खजूर की निंदा करता रहता है।<BR>- आर्यान्योक्तिशतक</P>
पंक्ति १,९५८:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">भाग्य / किश्‍मत</FONTspan></STRONG></P>
<P>आपका आज का पुरुषार्थ आपका कल का भाग्य है |<BR>-– पालशिरू</P>
<P>दुनिया में कोई भी व्यक्ति वस्तुतः भाग्यवादी नहीं है, क्योंकि मैंने एक भी ऐसा
पंक्ति १,९७०:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">चरित्र</FONTspan></STRONG></P>
<P>व्यक्तिगत चरित्र समाज की सबसे बडी आशा है ।<BR>— चैनिंग</P>
<P>प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है। एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास
पंक्ति १,९८३:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">ईश्वर</FONTspan></STRONG></P>
<P>ईश प्राप्ति (शांति) के लिए अंतःकरण शुद्ध होना चाहिए |<BR>– रविदास</P>
<P>ईश्वर के हाथ देने के लिए खुले हैं. लेने के लिए तुम्हें प्रयत्न करना होगा
पंक्ति १,९९३:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">मीठी बोली / मधुर वचन / कर्कश
वाणी</FONTspan></STRONG></P>
<P>तुलसी मीठे बचन तें , सुख उपजत चहुँ ओर । </P>
<P>वशीकरण इक मंत्र है , परिहहुँ बचन कठोर ॥ </P>
पंक्ति २,०१२:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">उदारता</FONTspan></STRONG></P>
<P>अयं निजः परोवेति, गणना लघुचेतसाम् ।<BR>उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्
॥</P>
पंक्ति २,०३१:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">स्वास्थ्य</FONTspan></STRONG></P>
<P>स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है ।</P>
<P>शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । ( यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे
पंक्ति २,०५८:
<P>&nbsp;</P>
<P>&nbsp;</P>
<P><STRONG><FONTspan colorstyle="color:#0000ff;">अन्य / विविध / अवर्गीकृत</FONTspan></STRONG></P>
<P>योगः चित्त्वृत्तिनिरोधः ।</P>
<P>वाक्यं रसात्मकं काव्यम ।</P>