"सुभाषित सहस्र": अवतरणों में अंतर

तीसरे पक्ष के वेबलिंक हटाये गये
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पंक्ति १,६५३:
संयम अतिभोग को रोकता है ।<BR>— रूसो</P>
<P>नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे
लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये ।<BR>— [[रामकृष्ण परमहंस ]]</P>
<P>महान कार्य महान त्याग से ही सम्पन्न होते हैं ।<BR>— स्वामी विवेकानन्द</P>
<P>&nbsp;</P>
पंक्ति २,१६४:
होते हैं। - सादी </P>
<P>जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन
अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । - रामकृष्ण परमहंस ]</P>
<P>मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद
करो। - अज्ञात </P>