"घाघ की कहावतें": अवतरणों में अंतर
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'''सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।'''<br>
'''परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।'''
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
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