"घाघ की कहावतें": अवतरणों में अंतर

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==सुकाल==
 
'''सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।'''<br>
'''परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।'''
 
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
<br>
 
'''शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।''' <br>
'''तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।'''
 
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।