"सुविचार सागर": अवतरणों में अंतर
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* ऐसी बानी बोलिये , मन का आपा खोय । <Br /> औरन को शीतल करै , आपहुं शीतल होय ॥
* बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग- शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है। <Br /> -स्वामी रामदेव
* पोथी पढ़ि - पढ़ि जग मुआ, पंडित हुआ न कोय।<Br /> ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पण्डित होय।।
* कस्तुरी कुंडल बसै, मृग ढ़ूढै वन माहिं।<Br /> ऐसे घटि - घटि राम है, दुनियां देखे नाहिं।।
* जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान,<Br /> मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान।
* निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।<Br /> बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
* जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ तहां पाप।<Br /> जहां क्रोध तहां काल है, जहां क्षमा तहां आप।।
* "
* धीरे - धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।<Br /> माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आये फल होय ॥
* शब्द सम्हार बोलिये, शब्द के हाथ न पाँव ।<Br /> एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव ॥
तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पांवन तर होय ।<Br/>
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रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
* आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना ।
* इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को छोटे से समूह ने ही बदला है ।
* जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग ।<Br /> चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।।<Br /> — [[रहीम]]
* कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ?<Br /> - स्वामी विवेकानंद
* रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।<Br /> हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
* बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।<Br /> जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय॥
* वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।<Br /> बांटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग ॥
* रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।<Br /> सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
* जन्म - मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है । उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है । <Br /> - हिन्दू धर्मग्रन्थ
* बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है।<Br /> — श्रीराम शर्मा आचार्य
* जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। <Br /> — श्रीराम शर्मा आचार्य
* "विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है।" <Br /> — श्रीराम शर्मा आचार्य
* अगर किसी को अपना मित्र बनाना चाहते हो, तो उसके दोषों, गुणों और विचारों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए।
* हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और यदि मुझसे भारत के लिए एक मात्र भाषा का नाम लेने को कहा जाए तो वह निश्चित रूप से हिंदी ही है।<Br /> — कामराज
* कोई भी राष्ट्र अपनी भाषा को छोड़कर राष्ट्र नहीं कहला सकता|~थामस डेविस
* हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और यदि मुझसे भारत के लिए एक मात्र भाषा का नाम लेने को कहा जाए तो वह निश्चित रूप से हिंदी ही है।☃☃↵— कामराज
— थोमस डेविस
(अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक महोदय, बीएचईएल द्वारा गणतंत्र - दिवस समारोह - 2007 के भाषण का एक अंश)
* कर्म भूमि पर फ़ल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है,<Br /> रब सिर्फ़ लकीरें देता है रंग हमको भरना पड़ता है।
* दूब की तरह छोटे बनकर रहो। जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है। <Br /> – गुरु नानक देव
* बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। <Br /> - अष्टावक्र
* मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। <Br /> - महात्मा गांधी
* अत्यंत साधारण छात्र भी दृढ संकल्प करें और सही दिशा में निरन्तर परिश्रम करते रहे तो उनका लक्ष्य दूर नहीं रह सकता|
* नियमित रुप से परिश्रम किया जाय तो मंद बुद्वि वाला भी जीवन में बहुत आगे निकल सकता है|<Br />
* स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा । सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥ अर्थ- किसी भी व्यक्ति का मूल स्वभाव कभी नहीं बदलता है। चाहे आप उसे कितनी भी सलाह दे दो. ठीक उसी तरह जैसे पानी तभी गर्म होता है, जब उसे उबाला जाता है। लेकिन कुछ देर के बाद वह फिर ठंडा हो जाता है।▼
▲अर्थ- किसी भी व्यक्ति का मूल स्वभाव कभी नहीं बदलता है। चाहे आप उसे कितनी भी सलाह दे दो. ठीक उसी तरह जैसे पानी तभी गर्म होता है, जब उसे उबाला जाता है। लेकिन कुछ देर के बाद वह फिर ठंडा हो जाता है।
[[श्रेणी:हिन्दी लोकोक्तियाँ]]
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