"रबिन्द्रनाथ टैगोर": अवतरणों में अंतर
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ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय...
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
==बाहरी कडियाँ==
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