"स्वामी विवेकानन्द": अवतरणों में अंतर

मनोज मिर्ज़ापुर (वार्ता) द्वारा किए बदलाव 19632 को पूर्ववत किया, कृपया इस तरह के वेबसाइट की कड़ी न जोड़ें
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
No edit summary
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति १२८:
 
* हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है - उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे।
*स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि जब पड़ोसी भूखा मरता हो,तब मंदिर में भोग चढना पुण्य नहीं,बल्कि पाप है|
 
* यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बीमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं। परन्तु जब उसके सीर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता है-- वह कितना ही फटा-पुराना क्यों न हो-- तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर हिन्दू के कमरे के भीतर पहुँच जाय, उसके लिए कहीं रोक-टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी न दे! इससे अधिक विड्म्बना की बात क्या हो सकता है? आइए, देखिए तो सही, दक्षिण भारत में पादरी लोग क्या गज़ब कर रहें हैं। ये लोग नीच जाति के लोगों को लाखों की संख्या मे ईसाई बना रहे हैं।।।। वहाँ लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गयी है! मैं उन बेचारों को क्यों दोष दूँ? हें भगवान, कब एक मनुष्य दूसरे से भाईचारे का बर्ताव करना सीखेगा।