"सुविचार सागर": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १०९:
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥
अर्थ- किसी भी व्यक्ति का मूल स्वभाव कभी नहीं बदलता है। चाहे आप उसे कितनी भी सलाह दे दो. ठीक उसी तरह जैसे पानी तभी गर्म होता है, जब उसे उबाला जाता है। लेकिन कुछ देर के बाद वह फिर ठंडा हो जाता है।
 
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