"दीनदयाल उपाध्याय": अवतरणों में अंतर

छो →‎कविता: empty section remove
पंक्ति १:
==उक्तियाँ==
==दीनदयाल उपाध्याय==
 
* हम लोगों ने अंग्रेजी वस्तुओं का विरोध करने में तब गर्व महसूस किया था जब वे (अंग्रेज )हम पर शाशन करते थे, पर हैरत की बात है, अब जब अंग्रेज जा चुके हैं, पश्चिमीकरण प्रगति का पर्याय बन चुका है।
* भारत जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उसका मूल कारण इसकी ‘राष्ट्रीय पहचान ’ की उपेक्षा है .है।
* मानवीय ज्ञान आम संपत्ति है .है।
* वहां जीवन में विविधता और बहुलता है लेकिन हमने हमेशा इसके पीछे की एकता को खोजने का प्रयास किया है।
* शक्ति हमारे असंयत व्यवहार में नहीं बल्कि संयत कारवाई में निहित है।