"शोले": अवतरणों में अंतर
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'''''[[w:शोले|शोले]]''''' १९७५ में निर्मित एक हिंदी भाषा की फिल्म है। रामगड के ठाकुर बलदेव सिंह एक इंसपेक्टर था, जिसने एक क्रूर डाकू गब्बर सिंह को पकड़कर जेल में डलवा दिया था जिसके पश्चात् गब्बर जेल से भाग निकलता है और ठाकुर के परिवार को बर्बाद कर देता है। इसका बदला लेने के लिए ठाकुर जय ([[अमिताभ बच्चन]]) तथा वीरू ([[धर्मेन्द्र]]) नामक दो चोरों की मदद लेता है।
:''निर्देशक - [[w:रमेश सिप्पी|रमेश सिप्पी]], लेखक - [[w:सलीम ख़ान|सलीम]]-[[w:जावेद अख़्तर|जावेद]]।
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* आधे इधर जाओ, आधे उधर जाओ, बाकी मेरे पीछे आओ।
* हम अंग्रेर्जों के जमाने के जेलर है! ह हा।
* हमारे जेल
* हमारे जेल
==ठाकुर==
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* भाग धन्नो भाग! आज तेरी बसंती की इज्जत का सवाल है।
* यूँ तो हमें ज्यादा बोलने कि आदत तो है नहीं।
*
==वीरू==
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:'''गब्बर''': हम्म... कितने आदमी थे?
:'''कालिया''': सरदार... दो आदमी थे।
:'''गब्बर''': हम्म... दो आदमी? ... '''सूअर के बच्चों'''... वो दो थे, और तुम तीन... फिर भी वापस आ गये। खाली हाथ... क्या समझ कर आये थे?... सरदार बहुत ''खुस'' होगा, ''साबासी'' देगा
:'''साँभा''': पूरे पचास हज़ार...
:'''गब्बर''': सूना? पूरे पचास हज़ार... और ये इनाम इसलिए है कि यहाँ से पचास पचास कोस दूर गाँवों में जब बच्चा रात को रोता है तो माँ कहती है - "बेटा सो जा... सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा।" और ये तीन हराम ज़ादे... ये गब्बर सिंह का नाम पूरा मिट्टी में मिलाये दिये... इसकी सज़ा मिलेगी... बराबर मिलेगी...
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==रहीम चाचा==
*इतना सन्नाटा
==सूरमा भोपाली==
* ऐसे
==प्रचार वाक्य==
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