"भारतेंदु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर
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==काव्यकृतियाँ==
=== [[ नये ज़माने की मुकरी ]] ===
▲<big>नये जमाने की मुकरी</big>
▲<big> जब सभाविलास संगृहित हुई थी, तब वैसा ही काल था कि (क्यौं सखि सज्जन ना सखि पंखा) इस चाल की मुकरी लोग पढ़ते-पढ़ाते थे किन्तु अब काल बदल गया तो उसके साथ मुकरियाँ भी बदल गईं । बानगी दस पाँच देखिए--</big>
अपनी खिचड़ी अलग पकावै ।।
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भीतर तत्व न झूठी तेजी ।
क्यों सखि सज्जन नहिं अँगरेजी ।।
निज निज बिपता रोइ सुनावैं ।।
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आँखौ फूटे भरा न पेट ।
क्यों सखि सज्जन नहिं ग्रैजुएट ।।
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