"सुविचार सागर": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति ९४:
 
कर्म भूमि पर फ़ल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है,<Br/>
रब सिर्फ़ लकीरें देता है रंग हमको भरना पड़ता है.है।
 
दूब की तरह छोटे बनकर रहो। जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है। <Br/>
पंक्ति १०८:
स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ।
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥
अर्थ- किसी भी व्यक्ति का मूल स्वभाव कभी नहीं बदलता है.है। चाहे आप उसे कितनी भी सलाह दे दो. ठीक उसी तरह जैसे पानी तभी गर्म होता है, जब उसे उबाला जाता है.है। लेकिन कुछ देर के बाद वह फिर ठंडा हो जाता है.है।
 
==बाह्य सूत्र==