"गौतम बुद्ध": अवतरणों में अंतर

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** '''धम्मपद''', अध्याय १६५
 
*हम जो सोचते हैं , वो बन जाते हैं।
*शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है। यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़तम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।
*तीन चीजें जादा देर तक नहीं छुप सकती, सूरज, चंद्रमा और सत्य।
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*पैर तभी पैर महसूस करता है जब यह जमीन को छूता है।
*अपने बराबर या फिर अपने से समझदार व्यक्तियों के साथ सफ़र कीजिये, मूर्खो के साथ सफ़र करने से अच्छा है अकेले सफ़र करना।
 
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==गलत आरोपण==
*हम जो सोचते हैं , वो बन जाते हैं।
** थोमस बायरम (१९९३), शम्भाला प्रकाशन<ref>{{cite book | author= थोमस बायरम | year =१९९३ | title = धम्मपद | edition=शम्भाला पॉकेट क्लासिक्स | publisher = शम्भाला प्रकाशन | id = ISBN 0-877739-66-8}}</ref> द्वारा प्रदत्त।
 
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==संदर्भ==
<references/>
 
==बाह्य सूत्र==