"कृष्ण": अवतरणों में अंतर
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Rahul Bott (वार्ता | योगदान) छो →उक्तियाँ: अल्प विराम, पूर्ण विराम आदि |
Rahul Bott (वार्ता | योगदान) →उक्तियाँ: यह एक ही श्लोक है। |
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पंक्ति १४:
* अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
** '''[[w:श्रीमद्भगवद्गीता|श्रीमद्भगवद्गीता]]''' ३:
*'''''यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारते।<br>अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥<br>परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।<br>धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥'''''
**हे [[:w:अर्जुन|अर्जुन!]] जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूँ अर्थात् अवतार लेता हूँ। सज्जनों के कल्याण, दुष्टों के विनाश एवं धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में जन्म लेता हूँ।
**'''श्रीमद्भगवद्गीता''' ४:
* ''युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्ट्राश्मकाञ्चनः।''
**प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए गंदगी का ढेर, पत्थर और सोना सभी समान हैं।
**'''श्रीमद्भगवद्गीता''' ६:
* ''सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्र्द्धा भवति भारत।<br>श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छृद्धः स एव सः।''
**मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। वह जो चाहे बन सकता/सकती है,
**'''श्रीमद्भगवद्गीता''' १७:
* हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है।
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